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________________ द्वितीयमें शब्द, मथं और वाक्य आदिके दोष और तीन प्रकारके दोषाङ्कुश ( दोषत्व. निवारक.) वणित हैं । तृतीयमें काव्य में शोभाका आधान करने वाले अक्षरसंहति आदि दश काव्यलक्षण निरूपित हैं। चतुर्थ में श्लेष आदि दश गुण दिये गये हैं । पञ्चममें शब्दाऽलङ्कार और १०० अर्थालङ्कार निरूपित हैं । इसमें जयदेवने अलङ्कारसर्वस्वका भी अवलम्बन किया है। षष्ठमें विभाव आदि, शृङ्गार आदि ९ रन, भावकाव्य आदि, व्यभिचारी भाव, रसाभास, भावाभास, मावशान्नि, भावोदय, भावसन्धि, भावशबलता और पाञ्चालिकी आदि ५ रीतियां और मधुरा आदि ५ वत्तियाँ निरूपित हैं । सप्तममें व्यञ्जनाव्यापार और ध्वनियोंके भेद वर्णित हैं । अष्टममें गुणीभूतव्यङ्गयके ८ भेद निरूपित हैं । नवम में लक्षणाके भेद दिये गये हैं । दशम मयख में अभिधाके छ: भेदों का वर्णन है । चन्द्रालोकर्म छः टीकाएं हैं, जैसे प्रद्योतन भट्टका शरवागम, गागाभट्ट वा विश्वेश्वरका राकागम, वैद्यनाथ पायगुण्डे ( बालंभट्ट ) की रमा आदि। चन्द्रालाकके पचम मयूखके भागको विस्तृत कर अप्पय्य दीक्षितने "कुबलयानन्द" नामक अलङ्कः : ग्रन्थका रचनां की है । जयदेवने चन्द्रालोके सिवाय "प्रसन्न राधब" नामक अति मनोहर नाटककी भी रचना की है। केशवमिश्रकी रचना और बहच्छाङ्गधरपद्धतिमें इसके पद्योंका उद्धरण दिया गया है। २२ एकावली, कर्ता-विद्याधर, समय-ई. १२ शतकका आरम्भ । विद्याधर, कलिङ्गके केसरिनरसिंह और प्रतापनरसिंह नामक राजाओंके सभापण्डित थे। ये "महामहेश्वर" और 'वैद्य" उपाधिसे विभूषित थे। इनके अलङ्गकार ग्रन्थ एकावली में कारिका, वत्ति और उदाहरण ये ३ अंश हैं । उदाहरणके पद्य विद्याधर. रचित और नृसिंहदेवके प्रशंसापरक हैं। इसमें ८ उन्मेष हैं । प्रथममें काव्यके हेतु और लक्षण और भामह और महिमभट्ट आदिके सिद्धान्तोंका वर्णन है । द्वितीयमें ३ प्रकारके शब्द शोर ३ प्रकारकी वृत्तियां वणित हैं । तृतीयमें ननिके भेद, चतुर्थ में गुणीभूतव्यङ्गयका निरूपण है । पञ्चममें तीन गुण और तीन रीतियां वर्णित हैं । षष्ठमें दोषका निरूपण, सप्तममें शन्दाऽलङ्कार और अष्टममें अर्थालङ्कार वणित हैं। इसके प्रथम उन्मेषमें ध्वन्यालोकका, अलङ्कारप्रकरणमें अलङ्कारसर्वस्वका तथा अन्यत्र काव्यप्रकाशका अनुकरण किया गया है। सिंह भूपालके रसाऽर्णवसुधाकरमें एकावलोका उल्लेख मिलता है। विद्याधरने "केलिरहस्य" नामक कामशास्त्रविषयक ग्रन्थ भी लिखा है । एकावलीपर मल्लिनाथकी "तरका" नामकी टीका है। २३ प्रतापरुद्रीय, कर्ता-विद्यानाथ, समय-ई० १४ शताब्दीका प्रथमपाद। प्रतापरुद्रीय वा प्रतापरुद्रयशोभूषणके कर्ता विद्यानाथ, आन्ध्रके राजा प्रतापपद्रदेवके सभापण्डित थे। इन्होंने "प्रतापरुद्रकल्याण" नाटककी भी रचना की है।
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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