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________________ कार थे । "सोम"के पुत्र प्रकृत वाग्मट चालुक्यवंशमें उत्पन्न जयसिद्धराज (ई० १०९४ - -११४३ ) के महामात्य थे, यह बात वाग्भटाऽलङ्कारके टीकाकार सिहदेवणिके कथनसे प्रतीत होती है । इनकी दूसरी कृति नेमिनिर्णण महाकाव्य है । वाग्भटालिङ्कारमें ५ परिच्छेद हैं, उनमें कुल २६० कारिकाएँ हैं। प्रथम परिच्छेदमें काव्यलक्षण, प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यासका लक्षण तथा कविशिक्षाकी चर्चा है । द्वितीयमें काव्यका आधार-संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और भूतभाषित (पैशाची भाषा ) ये चार भाषाएं मानी गई हैं एवम् पद और वाक्यके ८ दोष वर्णित हैं । तृतीयमें दश गुणोंके लक्षण और उदाहरण दिये गये हैं । चतुर्थमें ४ शब्दाऽलङ्कार और उनके भेद, ३५ अर्थाऽलङ्कार; वैदर्भी और गौडी २ वृत्तियां वर्णित हैं। पञ्चम में ९ रसोंका निरूपप, नायक-नायिकाओंके भेद और तत्सम्बद्ध विषय हैं। कान्याऽलङ्कारमें 5 टीकाए हैं, जिनमें जिनवर्द्धनसूरि ( ई० १४१९ ) और सिंहदेव. गणिकी टीका प्रसिद्ध और प्रकाशित हैं। २० काव्याऽनुशासन, कर्ता-हेमचन्द्रसूरि, समय-ई० १०८८-११७२ श्वेताम्बर जैनाचार्य हेमचन्द्र महान विद्वान् थे अतः "कलिकालसर्वज्ञ" इस उपाधिसे विभूषित थे । इनके अनेक ग्रन्थ हैं, जिनमे जैनन्यायमें प्रमाणमीमांसा ( अपनी टीकाके साथ ), योग और कोषके ग्रन्थ, सिद्धराज. जयसिहकी आज्ञासे निर्मित शब्दानुशासन (व्याकरण ) इत्यादि । प्रकृत कामगाऽनुशासनमें - अध्याय है, इसमें सूत्र वृत्ति और उदाहरण हैं । उदाहरण अन्य ग्रन्थोंसे लिये गये हैं । वृत्तिका नाम “अलङ्कार. चूडामणि" है इसके प्रथम परिच्छेदमें काव्यका प्रयोजन, हेतु और प्रतिभाके सहकारी काव्यलक्षण, शब्द और अर्थका स्वरूप, मुख्य, लक्ष्य और व्यङ्गय ३ प्रकारके अोंका विचार है । द्वितीय में रस, स्थायी भाव व्यभिचारी भाव, और सात्त्विक भाव वणित है । तृतीयमें शब्द, वाक्य और अर्थके दोषोंका निरूपण है । चतुर्थ में तीन गुण, और उनके द्योतक वर्णों का निरूपण है । पञ्चममें शन्दाऽलङ्कारोंका निरूपण है । षष्ठमें २९ अर्थाऽलङ्कार जिन में संसृष्टि, सङ्कर, पर्याय और परिवृत्ति आदि हैं, इनका विवेचन है। सप्तममें नायक और नायिकाके भेदोंका वर्णन है । अष्टममें काव्यके भेद और . प्रभेदोंका निरूपण है। काव्याऽनुशासनमें १५०० उदाहरण भिन्न भिन्न ग्रन्थोंसे लिये गये हैं। २१ चन्द्रालोक, कर्ता-जयदेव (पीयूषवर्ष), समय-ई० १३०० मिथिलानिवासी जयदेव, पीयूषवर्ष और पक्षधर नामसे भी विख्यात थे । ये महानया. यिक, कवि और अलङ्कारशास्त्री थे। ये यज्ञविद्याचतुर महादेवके पुत्र और सुमित्रा देवीके गर्भज थे । अलङ्कार ग्रन्थोंमें जयदेवका चन्द्रालोक; प्रौढ, बहुत प्रसिद्ध और उपादेय है । यह अनुष्टुप् छन्दमें रचित है। इसमें १० मयूख और २७५ कारिकाएँ हैं। चन्द्रालोकके प्रथम मयूख में काव्यका लक्षण, हेतु और शब्दके ३ भेद वर्णित हैं।
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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