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वस्त्वलहाररूपत्वाच्छन्दशक्त्युबो द्विधा । बलकारशब्दस्य. पृथगुपादानादनलङ्कारं वस्तुमात्र गृह्यते। तत्र बस्तुरूपः शब्दशक्त्युद्भवो व्यङ्गयो यथा
'पन्थिा ! ण एत्थ सत्थरमंत्थि मणं पत्थरत्थले गामे ।
उण्णअपओहर पेक्खिऊण जइ षससि ता. वससु ।। ध्यङ्गपाऽर्थः प्रतीयते स संलक्ष्यक्रमध्यङ्गपो ध्वनिः, स च त्रिविधः । शब्दशक्तिमूलाs. मुरणनव्यङ्गपः, अर्थशक्ति मूलाऽनुरणनध्यङ्ग उभय ( शब्दार्थ ) शक्ति मलाऽनरणसव्यजयश्च ॥ ६॥
विवृणोति-ऋमलक्ष्यत्वाविति । अनुरणनरूपः = प्रतिध्वनिरूपः ॥ ६ ॥
शब्दशक्तिमूलाऽनुरणनव्यङ्गयस्य वैविध्यं प्रतिपादयति-वस्त्वलहाररूपत्वाविति । व्यङ्गस्य वस्त्वलङ्काररूपत्वात= वस्तुरूपत्वात् अलङ्काररूपत्वचा, सन्दशक्त्युद्भवः शब्दशक्तमूलाऽनुरणनव्यङ्गपः, विधाद्विप्रकारो भवतीति भावः ।
विवणोति-प्रललारशम्बस्येति । अलङ्कारशब्दस्य पृथक उपादानात = महणात् वस्तुपदेन अनलारम्-अलङ्कारहितं, वस्तुमात्रं गृह्यते। तत्र = द्वयोमध्ये, वस्तुरूपशब्दशक्त्युद्भवं व्यङ्गपमुशहरति-पश्यिम इति ।
“पथिक! नात्र स्रस्तरमस्ति मनाक्प्रस्तरस्थले ग्रामे ।
, उन्नतपयोधरं प्रेक्ष्य यदि बससि तवस ॥"इति संस्कृतच्छाया उत्पन्न होगा तो अर्थशक्तिमूलक ध्वनि और उभय ( शब्दार्थ) शक्तिसे उत्पन्न होगा तो उभयशक्तिमूलक ध्वनि होती है, यह भाव है।
व्य जप अर्यके क्रमके लक्ष्य होनेसे ही अनुरणन (प्रतिध्वनि ) स्वरूप जों पाप अर्थ है वह शब्दशक्तिसे उत्पन्न होनेसे, अर्थ शक्ति से उत्पन्न होनेसे और शब्द बोर बर्थ दोनोंकी शक्ति से उत्पन्न होनेसे भी इस प्रकार तीन भेदोंसे युक्त होनेसे संसक्ष्यक्रमव्यङ्गप नामके ध्वनिकाव्यके भी शब्दशक्तिमूल अनुरणनव्यङ्गय, अर्थशक्तिमूल अनुरणनध्यङ्गप और शम्दाऽर्थ ( उभय ) शक्ति मूल अनुरणनव्यङ्गय इस प्रकार तीन भेद होते हैं । उनमें
शम्पशक्तिमूल मनुरपन व्यगचके दो भेद-वस्तुरूप और अलङ्काररूप · होनेसे शम्दशक्ति मूल व्यङ्गगके दो भेद होते हैं।
... बलङ्कार शब्दका पृथक् ग्रहण करनेसे वस्तुपदसे अलङ्काररहित वस्तुमान मिया पाता है।
शमशक्तिमूल बातुस्वरूपध्याय उ०-रातमें वास. वाहनेवाले पषिकको स्वयंदूतीकी शक्ति है। पाराषपूर्ण स्वरुवामे इस गांवों कुछ भी सस्तारण
२०मा०