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( ३४. ) २ कारिकाएं और "परिषयप्राप्ति" नामक पाम सन्धिमें ३ कारिकाएं हैं, इस प्रकार इस ग्रन्थमें कुल ५५ कारिकाएं हैं और वृत्तिमें समस्त विषयोंको स्पष्ट किया है । इसमें शिष्योंके ३ और कविके ५ भेदोंका उल्लेख किया है, तथा काव्यके गुणदोषविचारमें नाटय, व्याकरण और तर्कके विषयमें उपदेश दिया है। काश्मीरके राजा अनन्तदेवके राज्यमें इसकी रचनाका उल्लेख मिलता है । मेमेन्द्र के इन दो ग्रन्थोंके अतिरिक्त बहुत-से ग्रन्थ हैं उनमें कुछ ग्रन्थोंकी सूची दी जाती है-रामायणमजरी, भारतमञ्जरी, बृहत्कथामञ्जरी, दशाऽवतारचरित प्रभृति लगभग ५० ग्रन्थ शेमेन्द्रनिर्मित हैं । राजतरङ्गिणीमें इनकी नपावली नामकी कृतिका उल्लेख है परन्तु इसकी अभीतक उपलब्धि नहीं हुई है।
१७ काव्यप्रकाश, कर्ता-मम्मटभट्ट, समय-ई० १०५० से ११०० तक । काश्मीरवासी राजानक मम्मटभट्ट काव्यजगत्में काव्यप्रकाशके प्रसिद्ध लेखक हैं। ये अभिनवगुप्तपादके शिष्य, शैवसम्प्रदायवाले महान् वैयाकरण थे । काव्यप्रकाश, अलङ्कारशास्त्रके प्रन्थोंमें आकर माना जाता है। मम्मटमट्टने नाटयशास्त्रसे आरम्भ कर ध्वन्यालोक आदि समस्त प्राचीन ग्रन्थोंका आकलन कर अपने ग्रन्यको पुष्पित और फलित किया है । काव्यप्रकाशमें दृश्यकाव्यको छोड़कर भव्यकाक सम्पूर्ण विषयोंका साङ्गोपाङ्ग वर्णन किया गया है। इसमें दश . उल्लास और ११२ कारिकाएं हैं। इनकी वृत्ति इनकी स्वरचित है और उदाहरण अनेक कवियोंके ग्रन्थोंसे दिये गये हैं । इसकी कारिकाएं भरतनिर्मित हैं और वृत्तिमात्र मम्मटभट्टकी है ऐसा कुछ बङ्गीय विद्वानोंका कथन निमूल है । हां, इसकी कुछ कारिकाएं भरतके नाटयशास्त्रसे उद्धृत की गई हैं, यह सत्य है । काव्यप्रकाशके प्रथम उल्लासमें काव्यका प्रयोजन, कारण, लक्षण और भेदोंका प्रतिपादन है । द्वितीय में शमके वाचक, लाक्षणिक और व्यञ्जक ३ भेद और उनके वाच्य, लक्ष्य और व्यङ्गय तीन प्रकारके अर्थोका निरूपण है और तार्यार्थका निरूपण कर अभिहिताऽन्वयवादी और अन्विताऽभिधानवादीके सिद्धान्तोंका प्रदर्शन किया है । इसी तरह अभिधा, लक्षणा और व्यञ्जनाके भेदोंका निरूपण किया है । तृतीय उल्लासमें अर्थव्यजकता
और व्यञ्जनावृत्ति का विवेचन है। चतुर्थमें ध्वनिके अविवक्षितवाच्य और विवक्षिताऽन्यपरवाच्य इनके भेद और उपभेदोंके प्रतिपादनके साथ रसका स्वरूप, स्थायी भाव, विभाव, व्यभिचारी भाव तथा रससम्बद्ध चार सिद्धान्तोंका विवेचन है। पांचवें उल्लासमें मध्यम काव्य गुणीभूतव्यङ्गयके भेदोंका सोदाहरण वर्णन है। संपूर्ण ध्वनियों के भेदोंको दिग्दर्शन कर व्यञ्जनाके विरोधियोंके तर्कका खण्डन कर व्यञ्जनावृत्तिका स्थापन किया गया है। षष्ठ उल्लासमें काव्यके तीपरे भेद चित्र वा अधम कामके दो भेद-शब्दचित्र और अर्थचित्रका निरूपण किया है। सप्तम उल्लासमें दोषका लक्षण और पर, वाक्य, अर्थ और रसके दोषोंका निरूपण