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(शब्दाऽर्थाऽलङ्कार ) निरूपित हैं । पञ्चममें रस, भाव, नायक, नायिका, उनके लक्षण, भेद, ५ सन्धियां, ४ वत्तियां अन्य भी अनेक विषय निरूपित हैं। इसमें ६४३ कारिकाएं हैं. इनमेंसे दण्डीके काव्यादर्शसे लगभग ५०० और ध्वन्यालोकसे भी कुछ कारिकाएं ली गई हैं । प्राचीन कवियोंके करीब १५०० पर उदाहरणके तौरपर इसमें उद्धृत हैं । इसको ३ टीकाएं हैं, उनमें ई० १४ शताब्दीके तिरहुतके राजा रामसिंहदेवसे आज्ञप्त म० म० रत्नेश्वर मिश्रकी रत्नदर्पण टीका सर्वोत्तम है।
शृङ्गारप्रकाश, कर्ता-राजा भोज । समय-ई० ९९६-१०५१ इसमें नाट्य और काव्य दोनोंका विवेचन है । इसमें अभिमान और अहसारका प्रतीक शृङ्गार हो मूल रस है ऐसा प्रतिपादन किया है। शृङ्गारप्रकाशमें ३६ अध्याय हैं। इन्होंने अलङ्कारके शब्दाऽलङ्कार, अर्थाऽलङ्कार और उभयाऽलङ्कार इस प्रकार ३ भेद मानकर फिर प्रत्येकके २४ भेद कर कुल अलङ्कारोंके ७२ भेदोंका निरूपण किया है।
१६ औचित्यविचारचर्चा, कविकण्ठाभरण, कर्ता-क्षेमेन्द्र, समय ई० १०२८-८० क्षेमेन्द्र काश्मीरनिवासी थे, इनके पिताका नाम प्रकाशेन्द्र था। क्षेमेन्द्र अपनेको "व्यासदास" लिखते थे । इनको औचित्यविचारचर्चामें ३९ कारिकाएँ है। उनकी वृत्ति भी उन्होंकी रचना है । क्षेमेन्द्र मोचित्यका लक्षण लिखते हैं
"उचितं प्रादुराचार्याः सदृशं किल यस्य यत् ।
उचितस्य च यो भावस्तदौचित्यं प्रचक्षते ॥" अर्थात् आचार्य, जिसका जो सदृश है उसे "उचित" कहते हैं, उचितका जो भाव है उसे "ओचित्य" कहते हैं । इन्होंने अपने इस ग्रन्थमें पद, वाक्य, प्रबन्धाऽर्थ, गुण, अलङ्कार, रस, क्रिया, कारक, लिङ्ग, वचन, विशेषण, उपसर्ग, निपात, काल, देश, कुल, व्रत, तत्त्व, सत्त्व अभिप्राय, स्वभाव, सारसंग्रह, प्रतिमा, अवस्था, विचार, नाम और आशीर्वाद इतने विषयोंमें औचित्यका प्रदर्शन कर वृत्तिग्रन्थमें उनके उदाहरणोंको सविस्तर प्रौढिपूर्वक प्रदर्शित किया है। उदाहरणोंमें बहुत से कवियोंकी रचनाएँ हैं । क्षेमेन्द्रने अपनी रचना में भी उदारतापूर्वक अनौचित्यका प्रदर्शन किया है।
औचित्यविचारचर्चापर मद्राससे "सहृदयतोषिणी" नामकी एक टीका प्रकाशित है।
कविकण्ठाभरण, कर्ता-क्षेमेन्द्र, समय-ई० १०२८-८० इस ग्रन्थमें क्षेमेन्द्रने काव्यरचनामें विघयजनोंके लिए बहुत-से उपयोगी विषयोंकी अवतारणा की है । इसमें ५ सन्धियाँ हैं । "कवित्वप्राप्ति" नामकी प्रथम सन्धिमें २४ कारिकाएँ हैं । "शिक्षाकथन" नामको द्वितीय सन्धिमें २३ कारिकाएँ हैं। "चमत्कारकथन" नामकी तृतीय सन्धिमें ३ कारिकाएं हैं, और "गुणदोषविभाग” नामकी चतुर्थ सन्धिमें
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