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( ३२ ) स्वभाव, और सहचरोंका वर्णन, चार वत्तियां और उनके अङ्ग वणित हैं। तृतीयमें नाटककी स्थापना और दश रूपकोंके लक्षण वणित हैं । चतुर्थ प्रकाशमें इसका सविस्तर निरूपण है । दशरूपककी प्राचीन ३ टीकाएं हैं । अवलोकके अवलोकनसे मालूम होता है,कि धनिकने "काव्यनिर्णय" नामका ग्रन्थ भी लिखा था, जिसके कई श्लोक इसमें उदधृत हैं । इसमें स्थित रसनिरूपणका आधार भट्टनायकका ग्रन्थ है ।
११ व्यक्तिविवेक, कर्ता-महिमभट्ट, समय-ई० १०२५-१०६०-राजानक महिमभट्ट काश्मीरनिवासी थे। इनके पिताका माम श्रीधर्य था, और महाकवि श्यामल इनके गुरु थे । क्षेमेन्द्रने सुवृत्ततिलक और औचित्य विचारज में श्यामलके पद्योंका उद्धरण दिया है। महिम मट्ट महानयायिक और आलङ्कारिक थे, इन्हें ने ध्वनिकी पृथक्सत्ताका खण्डन कर उसे अनुमानमें अन्तर्भूत किया है। राजानक सय्यकने अपने अलङ्कारसर्वस्व में व्यक्तिविवेकके सिद्धान्तोंका संग्रह किया है। काव्यप्रकाशके बहुतसे टीकाकारोंका मत है कि मम्मटने काव्यप्रकाशके पञ्चम उल्लास में व्यक्तिविवेकका खण्डन किया है और सप्तम उल्लासमें दोषोंका उदाहरण व्यक्ति विवेक आधारपर दिया है । व्यक्तिविवेकमें बालरामायण के श्लोकोंका उद्धरण और वक्रोक्तिजीवित और लोचनका खण्डन उपलब्ध होता है। महिम मट्ट रसको काव्यात्मा मानते हैं । व्यक्तिविवेकमें ३ विमर्श हैं। प्रथम विमर्श में ध्वनिका लक्षण देकर उसका अनुमानमें अन्तर्भाव किया है। द्वितीय में अनौचित्यका विचार, भेद, अन्तरङ्ग अनौचित्य और बहिरङ्ग मनौचित्य और उनके ५ दोष और उदाहरण है। तृतीयमें ध्वन्यालोकके ४० उदाहरणोको अनुमानमें अन्त भूत किया है।
१५ सरस्वतीकण्ठाभरण, शृङ्गारप्रकाश, कर्ता--राजा भोज, समय-ई० ९५६-१०५१-धाराधराधीश महाराज भोजने पूर्वोक्त दो अलङ्कार ग्रन्थोंका प्रणयन किया है । ये सिन्धुराज वा सिन्धुलके पुत्र और महान् विद्वान् थे तथा विद्वानोंको पुरस्कृत करनेवालोंमें अप्रतिम सहृदय थे, "प्रत्यक्षरं लक्ष दौ" यह उक्ति इनकी गुणग्राहिता और दानशीलताको प्रसिद्ध करने वाली है। पूर्वोक्त दो अलङ्कारके ग्रन्थोके अतिरिक्त अन्य विषयोंमें इनके निम्नलिखित ग्रन्थ अत्यधिक प्रख्यात हैं
साक रणमें शब्दानुशासन, आयुर्वेदमें राज.मृगाक, यो में भोगति वा राजमाड, कोषमें नाममालिका, कला में शालिहोत्र और समराङ्गणसूत्रधार, रत्नादिपरीक्षामें युकि कल्पतरु इत्यादि हैं । प्रकृत सरस्वतीय ण्ठाभरण और शृङ्गारपकाश पर कार ग्रन्म हैं। सरस्वतीकण्ठाभरणमे ५ परिच्छेद हैं। प्रथम परिच्छेदमें १६ पददोष, उतने ही वाक्यदाप, उतने ही वाक्याऽर्थदोष, २८ शब्दगुण और स्तने ही वाक्याऽर्थगृश पणित हैं । द्वितीयमें २४ शब्दाऽलङ्गकार सविस्तर निरूपित हैं । तृतीय: में २४ अर्थालङ्कार उसी तरह निरूपित हैं। चतुर्थमें २४ उभयाऽलङ्कार