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________________ ( ३१ ) लगभग ५०० है। प्रथम उन्मेषमें सरस्वतीकी स्तुति, काव्यका प्रयोजन, लक्षण, शब्दाऽलङ्कार और काव्यालङ्कारका निवेश, वक्त्रोक्तिका लक्षण और उसका महत्त्व, वैचित्र्य आदि ५ गुण और तीन प्रकारके मार्ग इत्यादि विषयोंका प्रतिपादन है। द्वितीय में वर्णविन्यासक्रत्वका विवरण, वृत्तियां, पदपूर्वार्द्धवक्रताके अनेक भेद, विशेषगवक्रता और संवतिवकता, इनका सोदाहरण प्रतिपादन और वृत्तिवैचित्र्यवक्रता आदि अनेक विषय निर्दिष्ट हैं। तृतीयमें वाक्य वैचित्र्यवक्रताका उपसादन है, इसमें वस्तुवक्रतारा भी समावेश है। रसवत, प्रेयः और ऊर्जस्वी आदिके अलङ्कारत्वका खण्डन और अलङ्कार्यत्वका मण्डन और २० प्रधान शब्दालङ्कारों का विवेचन है। चतुर्थ में प्रकरण वक्रता और प्रबन्धवक्रताका उपपादन है। प्राचीन ग्रन्यों में बहुचर्चित होकर भी यह ग्रन्थ अप्राप्त था, हाल ही में प्राप्त हुआ है । प्रचुर प्रसिद्धि होनेपर भी दुभाग्यवश इसकी कोई भी संस्कृतव्याख्या उपलब्ध नहीं है । डाक्टर "दे" से प्रकाशित संस्करण में इसके ३ उन्मेष थे; पीछे आचार्य विश्वेश्वरकी हिन्दी टीका और डा० नगेन्द्रको विस्तृत भूमिकावाले संस्करणमें ४ उन्मेष मिलते हैं, तथा दोनों संस्करणोंमें पर्याप्त पाठभेद भी है। १३ दशरूपक, कती-धनञ्जय, समय --- ई० १००० के लगभग-दशरूपक नाटयशास्त्रका ग्रन्थ है। इसके कर्ता धनञ्जय और अवलोक नामक टीकाके कर्ता धनिक थे । दोनों सहोदर भाई, विष्णु के पुत्र थे । ये दोनों विद्वान् राजा मुञ्ज( ई० ९७४-९९४ ) को समामें थे । धनञ्जय समापण्डित थे और धनिक महासाध्यपालके अधिकारसर आरूढ थे । धनिकने दशरूपककी अवलोक टीका, राजा मुञ्जके उत्तराधिकारी सिन्धुराज ( ई० ९९४-१०१० ) के शासनकाल में लिखी थी। ई० चतुर्दश शताब्दीके विश्वनाथ कविराज और प्रतापरुद्रयशोभूषणकार विद्याधरने धनञ्जयकी कारिकाएँ धनिकके नामसे उद्धृत की हैं। दरारूपको ४ प्रकाश और लगभग ३०० कारिकाएं हैं। अवलोक टोकामें उदाहरणोंके पद्य ३०० से अधिक हैं, जिनमें २० से अधिक प्राकृत और संस्कृत पद्य धनिक के रचिा ही हैं। धनञ्जयने “अवस्थाऽनुकृतिर्नाटयम्" अवस्थाका अनुकरण (नकल ) नाटय है ऐसा लिखा है। उन्होंने रूपकके नाटक, प्रकरण, माण, प्रहसन, डिम, व्यायोग, समवकार, वीथी, अङ्क, और ईहामृग इस प्रकार १० भेदों का उल्लेख कर लक्षण और उदाहरण दिये हैं। नाट्यविषय में बड़ो रोचकता और विद्वत्तासे इसमें प्रकाश डाला गया है । परवर्ती नयथारों ने दशरूपकको अतिशय प्रामाणिक माना है। इसमें प्रथम प्रकाशमें रूपकके १० भेद, पाँच सन्धियाँ, उनके अङ्ग, विष्कम्भ, चूलिका, अङ्कास्य, अङ्कावतार और प्रवेश के लग और उदाहरण हैं । द्वितीयमें नायक-नायिकाओंके भेद, उनके
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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