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________________ ( ३० ) अन्य छः ग्रन्थोंका भी उल्लेख मिलता है जैसे-बालरामायण ( नाटक), विद्धशालमजिका ( नाटिका ), प्रचण्डपाण्डव वा बालभारत (नाटक), कपूरमञ्जरी ( सट्टक ). हरविलास ( महाकाव्य ) और भुवनकोष (भूगोलशास्त्र )। ९ अभिधावृत्तिमातृका, कर्ता-मुकुलभट्ट, समय-ई० दशमशताब्दीका प्रथम भाग--- मुकुलभट्टके पिता का नाम कल्लट भट्ट है, वे काश्मीरनरेश अवन्तिवर्माके ( ई० ८५५-८८३ ) सभापण्डित थे। माणिक्यचन्द्र के काव्यप्रकाशटीका सङ्केतमें मुकुल भट्टका वार-वार उल्लेख पाया जाता है। प्रतीहारेन्दुराज मुकुल भट्टके शिष्य थे। अभिधावृत्तिमातृकामें कुल १५ कारिकाएं हैं इसकी वृत्ति भी ग्रन्थकारने स्वयम् की है । इसमें अभिधा और लक्षणा वृत्तिका प्रतिपादन है, और लक्षणाके छ: भेद प्रदर्शित हैं। इसकी वृत्ति में उद्भट, कुमारिलभट्ट, ध्वन्यालोक, भर्तृमित्र, महाभाष्य, विज्जका, वाक्यपदीय और शबरस्वामीका उल्लेख पाया जाता है। १० काव्यकौतुक, कर्ता-भट्टतौत वा भट्टतोत, समय-ई० ९६०-९९० । यह ग्रन्य अनी प्राप्त नहीं है। भट्टतौत अभिनवगुप्तके गुरु थे। क्षेमेन्द्रने औचित्यविचारचर्चा में और हेमचन्द्रने अपने काव्याऽनुशासनमें इनका उल्लेख किया है। हेमचन्द्रने अपने विवेक में लिखा है कि भट्टतोतका मत श्रीशकुकके "अनुकरणरूपो रसः" इस उक्तिके विरुद्ध है। इन्होंने शान्तरसको नवम माना है। ध्वन्यालोकलोचनसे प्रतीत होता है कि अभिनवगुप्तने इसकी "विवरण" टीका की थी। . ११ हृदयदर्पण, कर्ता-भट्टनायक, समय-ई. ९०० से १००० का मध्यभाग-भरतमुनिके रससूत्रके ४ व्याख्याताओंमें अन्यतम व्याख्याता भट्टनायक हैं । ये सांख्यशास्त्रके विद्वान् माने जाते हैं। इनका सिद्धान्त अभिनवभारती, व्यक्तिविवेक, काव्यप्रकाश और माणिक्यचन्द्रकृत काव्यप्रकाशकी टोका संकेतमें उद्धृत है। इन्होंने साधारणीकरण सिद्धान्तको प्रदर्शित कर रसमें भक्तिवादका प्रवर्तन किया है । इनका ग्रन्थ अभी उपलब्ध नहीं है। १२ नक्रोक्तिजीवित, कर्ता-कुन्तक, समय-ई० १०५५ । राजानक कुन्तक कश्मीरनिवासी थे । इनका जीवनचरित्र कुछ भी उपलब्ध नहीं है । अधिकतर ये "मक क्तिजीवितकार" पदसे प्रसिद्ध हैं। वक्रोक्ति नीवितमें . राजशेखरके पक्षका उल्लेख होनेसे ये राजशेखरके परवर्ती हैं । ई० ११ शताब्दीके द्वितीय भागमें उद्भूत पहिमभट्टने कुन्त के सतकी चर्चा की है, अत: ये कुन्तकके समकालि और उनसे कुछ वृद्धतर थे। “वक्रोक्तिः काव्य नीवितम्" कहकर उन्होंने वक्रोक्तिको काव्यका जीसित या आत्मा मान लिया है। वक्रोक्तिजीवित अतिशय प्रौढ ग्रन्थ है। इसमें ४ उन्मेष हैं । इस ग्रन्यमें कारिका, वृत्ति और उदाहरण हैं । इसमें उदाहरणोंको संख्या
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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