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( २९ ) पञ्चममें व्युत्पत्ति और प्रतिभाकी व्याख्या, कवियोंके शास्त्रकवि आदि भेद और उपभेदोंकी चर्चा है । काव्यकविके रचनाकवि आदि ८ भेदोंका सलक्षण और सोदाहरण उल्लेख, कविकी दश अवस्थाएँ, पाकभेद, ९ प्रकारके काव्य इत्यादि अनेक विषय वर्णित हैं । षष्ठमें पदकी व्याख्या, उसकी सुत्ति आदि ५ वृत्तियाँ, अभिधा व्यापार, वाक्य के दश भेद इत्यादि प्रचुर विषय हैं। सप्तम में ब्रह्मा आदि कर्ताओं के भेदसे पुराण आदिके मतसे वाक्यके ३ भेद, वैदी आदि ३ रीतियाँ, काकुभेद आदि अनेक विषय वणित हैं । अष्टममें श्रुति स्मृति आदि काव्याऽर्थोंके सोलह कारण और उनके उदाहरण वमित हैं। नवम में दिव्य आदि ( अर्थ, उनके भेद प्रभेद आदि प्रचर विषय हैं। दशममें कविचर्या और राजचर्या आदिसे सम्बद्ध अनेक विषय हैं। एकादशमें पूर्वक वियोंके शब्द और अर्थ के अनुकरणके प्रकार आदि विषयों का वर्णन है। द्वादशमें पूर्वकविके अर्थक अनुकरणके प्रकार, कवियोंके प्रभेद प्रतिबिम्बकल्प, विकल्पकी समीक्षा आदि अनेक विषयों का वर्णन है। त्रयोदशमें दूसरेके अर्थ के अनुकरणमें आलेख्यप्रख्यके अनेक भेद दिये गये हैं। चतुर्दशमें कविसमय, उसमें जाति, द्रब्ध, क्रियाके समयको स्थापनाका वर्णन है। पञ्चदशमें गुण के समयकी स्थापना है। षोडशमें स्वर्ग और पातालके कवियोंके समय ( संकेत ) की स्थापना है। सप्तदश अध्यायमें देशके विभागोंका वर्णन है । अष्टादशमें कालके विभागोंका वर्णन है। राजशेखर काव्यमीमांसाको १६ भागोंमें लिखना चाहते थे, उनमें यह प्रथम भाग प्रतीत होता है। राजशेखर, पुराण न्याय आदि चौदह विद्याओंसे अतिरिक्त
"सकलविद्यास्थानकायतनं पञ्चदशं काव्यं विद्यास्थानम्" "अर्थात समस्त विद्याओंका एकमात्र आधारभूत काव्य पन्द्रहवीं विद्याके स्थानमें है." ऐसा लिखते हैं। यह ग्रन्थरस्न न केवल काव्यरचनाके इच्छुकोंको बल्कि शास्त्रजिज्ञासु समस्त जनोंको पुरातन शास्त्र और इतिहास भूगोल आदि अगणित विषयोंका व्युत्पादक है-पूर्ण ग्रन्थ के निरीक्षणसे ऐसा जाना जाता है।
___ राजशेखर यायावरवंशमें उत्पन्न महाराष्ट्र ब्राह्मण थे, इनके प्रपितामह अकालजलद नामके थे, पितामह दुर्दुम नामके राजाके मन्त्री थे और माता शीलवी नामकी थी। ये कान्यकुब्ज वा महोदय के नरेश निर्भय वा महेन्द्रपालके गुरु थे । चौहानवंशकी अवन्ति सुन्दरी नामकी विदुषीरो इनका विवाह हुआ था । राजशेखरने काव्यमीमांसामें अवन्ति सुन्दरीके मतोंका उद्धरण दिया है। कर्पूरमञ्जरी सट्टक में इनकी "वालकवि" और "कविराज" उपाधि देखी जाती है । महेन्द्रशालके पुत्र नरेः देवको राजशेखरने प्रचण्डपाण्डव वा बालभारत में अपना संरक्षक लिखा है । यशस्तिलक और तिलकमजरी आदि ग्रन्थोंमें भी इनका उल्लेख पाया जाता है। राजशेखरके बनाये हुए