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________________ ( २८ ) शक्तिका परिचय मिलता है। दुर्भाग्यसे इनके अन्य दो ग्रन्थ उपलब्ध नहीं। इन्होंने ज्यजनावृत्तिसे प्रतिपाद्य ध्वनिको ही काव्यकी आत्मा मानकर उसीके प्रतिपादन और भेद प्रभेदके वर्णनमें अपनी पूरी शक्तिका प्रयोग किया है। स्फोटनाद ही ध्वनिसंप्रदायकी मूलभित्ति है । ध्वन्यालोकम वेणीसटारका उल्लेख मिलता है। अभिनवगुप्तपादाचाय ई० ११ शताब्दीके पूर्वभागस्थित अभिनवगुप्त 0 4 ने 5वन्याला फकी 'लोचन" नामको याख्या की है । इस लोचन ग्रन्थसे विदित रोता है कि अभिनवगुप्तके किसी पूर्वज विद्वान्ने भी ध्वनि ग्रन्थकी टीका की थी। अभिनताप्त, तो रेन्दुराज और भट्ट. तोतके शिष्य एव शैवसंप्रदायके महान विद्वान और मभट्टके गुरु थे । ये आवाल ब्रह्मचारी थे ! इनकी लोचन दीका मूलग्रन्थ के समान माहित्यशास्त्रीय अनेक सिद्धान्तोंका आकर ग्रन्थ है । कह सकते हैं कि वाचम्पतिमिश्रकी भामती व्याख्यासे शङ्कराचार्यके ब्रह्मसूत्र-मायकी तरह अभिनवगुप्तकी लोचन व्याख्यासे ध्वन्यालोककी श्रीवृद्धि हुई है। अतएव अभिनवगुप्तकी ही "कि लोचनं विनालोको भाति चन्द्रिकयाऽपि हि । तेनाऽभिनवगुप्तेन लोचनोन्मीलनं व्यधात् ॥" यह उक्ति पूर्णरूपसे सत्य है । इन्होंने बीससे भी अधिक ग्रन्थोंकी रचना की है। उनमें तन्त्रालोक, प्रत्यभिज्ञाविमशिनी, भरतनाट्यशास्त्रकी अभिनवभारतो टीका आदि ग्रन्थ हैं । रसके विषय में अभिनवगुप्तका सिद्धान्त सर्वसम्मत और वैज्ञानिक है जिसे मम्मटभट्टने सिद्धान्तके रूपमें प्रस्तुत किया है। . १० काव्यमीमांसा, कर्ता-राजशेखर, समय-ई० दशमशताब्दीका पूर्वभाग । काव्यमीमांसा अन्य अलङ्कारशास्त्रके ग्रन्थोंसे भिन्नरूप है, इसमें रस, उनि अलङ्कार आदिका विवेचन न होकर काव्यरचनाके लिए अनेकानेक महत्वपूर्ण विषयोंग वैज्ञानिक संकलन किया गया है। इसमें १८ अध्याय हैं । प्रथम अध्यायमें शास्त्रसंग्रह है, उसमें श्रीकण्ठसे ब्रह्मा और विष्णु आदि ६४ शिष्योंको दिये गये काव्यशास्त्रके उपदेशोंका वर्णन है और अने 6 आचार्योंके अनेक छात्रों को काव्यके तत्तद्विषयोंके अध्यापन का उल्लेख है । द्वितीयमें शास्त्रनिर्देश और काव्य आदिके भेदोंका सलक्षण वर्णन है । रामशेखर वेदार्थज्ञान के लिए उपकारक होनेसे अलङ्कारको सप्तम वेदाङ्ग मानते हैं। तृतीय में ब्रह्माजीके वरदानसे सरस्वतीसे काव्यपुरुषका जन्म, साहित्यविद्यावधू और काव्यपुरुषके वेषभूषादिसे तत्तद्दिशाओं में तत्तवृत्ति और रीतिकी उत्पत्ति आदि विषयोंका वर्णन है। चतुर्थमें शिष्यों के बुद्धिमान और आहार्यबुद्धि आदि भेद, प्रतिभाका लक्षण और भेद, कवके सारस्वत आदि ३ भेद और लक्षण, भावकत्व और कवित्वका भेद, भावकके ४ भेद इत्यादि अनेक विषयों का वर्णन है।
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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