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( २७ ) षोडशमें काव्यभेद, कथा और आख्यायिका आदि गद्यकाव्योंका और अन्य विशेषताओं का वर्णन है । मम्मट और विश्वनाथने स्थान-स्थानपर इसकी सामग्रीका उपयोग किया है । नमिसाधु नामके श्वेताम्बर जैनने काव्यालङ्कारकी टीका की है, यह प्राचीन और प्रौढ है । यह विक्रमसंवत् ११२५ में निर्मित है।
९ ध्वन्यालोक, कर्ता-आनन्दवर्द्धन, समय-ई० ८५०-ध्वनिमार्गके प्रवर्तक आनन्दवर्द्धन आचार्यने ध्वनिकारिका और उसकी वृत्ति आलोककी रचना की है, इस प्रकार यह ग्रन्थ "ध्वन्यालोक" नामसे विख्यात है। कुछ विद्वान् ध्वनिकारिका और उसकी आलोक वृत्तिके रचयिता भिन्न-भिन्न पुरुष हैं ऐसा कहते हैं. इसमें बहुत मतभेद है, जो हो अलङ्कारशास्त्रमें ध्वन्यालोक आकर ग्रन्थ माना जाता है । मम्मटभट्ट, विश्वनाथ कविराज और पण्डितराज जगन्नाथ सभी इनका सम्मान करते हैं । जगन्नाथ. ने इनको "अलङ्कारसरणिव्यवस्थापक" ऐसा लिखा है। इनका निवास स्थान भी काश्मीर हैं । इनका "देवीशतक" नामका स्तोत्रग्रन्य उपलब्ध है, उसके अन्तिम पद्यसे पता चलता है कि ये "नोण' नामरे पण्डितके पुत्र थे । राजतरङ्गिणीके
मुक्ताकणः शिवस्वामी कविरानन्दवर्द्धनः ।
प्रथा रत्नाकरश्वाऽगात्साम्राज्येऽवन्तिवमणः ।। इस श्लोकसे जाना जाता है कि ये ई० ८५५-८८३ में स्थित काश्मीरराज अवन्तिवर्माके सभापण्डित थे। इन्होंने अपने ग्रन्थमें उद्भट का उल्लेख किया है । राजशेखरने इनकी चर्चा की है। आनन्दवर्द्धनके ग्रन्थ ध्वनि, आलोक, अर्जुनचरित, विषमबाणलीला; धर्मकीतिके प्रमाणविनिश्चयकी टीका धर्मोत्तमा, देवीशतक और तत्वालोक माने गये हैं। इनमें अभी ध्वनि, आलोक और देबीशतक ये ३ ग्रन्थ उपलब्ध हैं । जल्हणने सूक्तिमुक्तावली में राजशेखरसे प्रदर्शित
"ध्वनिनाऽतिगभीरेण काव्यतत्वनिवेशिना ।
आनन्दवर्द्धनः कस्य नासीदानन्दवर्द्धनः ॥" इस श्लोकसे आनन्दवर्द्धनकी प्रशंसा की है, अर्थात्-काव्यतत्त्वको स्थिर करने. पाली अत्यन्त गम्भीर ध्वनिसे आनन्दवर्द्धन किसके आनन्दका वर्द्धन करनेवाले नहीं थे। ध्वन्यालोक, अलङ्कारशास्त्रके सिद्धान्तोंका प्रतिष्ठापक माना जाता है : ध्वनिग्रन्थमें ३ अंश हैं-कारिका, वृत्ति और उदाहरण । कारिकाओंकी संख्या १२९ है । वृत्ति में कारिकाकी व्याख्या है । उदाहरण प्राचीन कवियोंके ग्रन्थोंसे लिये गये हैं। इसमें ४ उद्योत हैं। प्रथम उद्योतमें ध्वनिके विरोधियोंके मतका खण्डन है। द्वितीय और तृतीयमें ध्वनि भेदोंका सविस्तर विवेचन है। चतुर्थ में ध्वनिकी उपयोगिताका निरूपण किया गया है । ये मम्मट भट्टके समान केवल भावक विद्वान नहीं थे प्रत्युत कारक विद्वान् भी थे, देवीशतक स्तोत्रकाव्यसे इनकी कवित्व