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निरूपण किया गया है। ध्वन्यालोकलोचन, काव्यप्रकाश, अलङ्कारसर्वस्व और साहित्यदर्पण आदि ग्रन्थोंमें वामनके मतका उल्लेख किया गया है। कलणकी राजतरङ्गिणीके
"मनोरथः शङ्खदत्तश्चटकः सन्धिमांस्तथा।
बभूवुः कवयस्तस्य वामनाद्याश्च मन्त्रिणः॥ इस उक्तिसे वामन, जयापीडके मन्त्री और उद्भटके समकालिक थे ऐसा प्रतीत होता है। काशिकाकार नमन इनसे पूर्ववर्ती थे। “काव्यं ग्राह्यमलङ्कारात्' इस सूत्रके अनुसार वामनके मतमें गुण और अलङ्कारसे संस्कृत शब्द और अर्थ ही काव्य है। वामन रीति मार्गके प्रवर्तक माने जाते हैं। "विशिष्टा पदरचना रीतिः" यह रीतिका लक्षण है। वामनने वृत्ति में अमरुशतक, महावीरचरित, उत्तररामचरित, वेणीसंहार, शाकुन्तल, विक्रमोर्वशीय, कादम्बरी, हर्षचरित, किरातार्जुनीय, कुमारसंभव; मृच्छकटिक, मेघदूत, रघुवंश, शिशुपालवप आदि ग्रन्थोंका उदाहरण दिया है । काव्यालङ्कारसूत्र में महेश्वरकी और गोपेन्द्र त्रिपुरहर भूपालकी “कामधेनु” नामकी व्याख्या उपलब्ध है।
८ काव्यालङ्कार, कर्ता-रुद्रट, समय-ई० ८५० के लगभग-रुद्रटका दूसरा नाम शतानन्द था। ये भट्टवामुकके पुत्र और सामवेदी थे। इनका निवासस्थान काश्मीर था। इनके काव्याऽलङ्कारमें १६ अध्याय हैं । इस ग्रन्थ में काव्यशास्त्रके प्रायः स मी अङ्गोंका वर्णन है । इसकी रचना आर्या छन्दमें है परन्तु अध्याय के अन्त में अन्य छन्दों का भी प्रयोग है। पद्यसंख्या ७३४ है। इसमें समस्त उदाहरण कविनिर्मित हैं। प्रथम अध्याय में ५ शब्दाऽलङकार, ४ रीतियाँ, भाषाके प्राकृत, संस्कृत, मागध, पिशाचभाषा, सूरसेनी और अपभ्रंश इस प्रकार ६ भेद और अनुप्रासको ५ वृत्तियां वर्णित हैं। तृतीयमें यमकका सविस्तर वर्णन है। चतुर्थ में श्लेष और उसके ८ भेद निरूपित हैं। पञ्चम में चित्रकाव्यका प्रतिपादन है । षष्ठमें पद और वाक्यके दोषोंका निरूपण है। सप्तममें शब्दके ४ भेद, प्रभेद और वास्तव, इनपर आधारित २३ अलङ्कारोंके लक्षण हैं ! अष्टममें औपम्यके २१ अलङ्कार निरूपित हैं । नवम में अतिशय. के १२ अलङ्कारोंका वर्णन है। दशममें शुद्ध श्लेषके १० और सङ्करके २ भेदोंका प्रतिपादन है । एकादशमें नौ प्रकारके अर्थदोष और चार प्रकारके उपमादोष वणित हैं। द्वादश में १० प्रकारके रस, शृङ्गारका लक्षण और भेद उसके संभेग और विप्रलम्भ २ भेद, नायकके गुण, उसके सहायकोंका वर्णन और नायक तथा नायिका के भेदों का वर्णन है। त्रयोदशमें संभोग-शृङ्गार और देश और काल के भेदोंसे नायिकाकी विभिन्न चेष्टाओंका वर्णन है । चतुर्दश में विप्रलम्म शृङ्गार, उसकी १० अवस्थाएँ, खण्डिता नायिकाके अनुनयके छः उपाय वर्णित हैं। पञ्चदशमें वीररस और अन्यरसोंका प्रतिपादन है।