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इसी तरह दण्डोकी रचनाके विषय में शाङ्गधरपद्धति के
त्रयोऽग्नयस्त्रयो वेदास्त्रयो देवानयो गुणाः ।
त्रयो दण्डिप्रबन्धाश्च त्रिषु लोकेषु विश्रुताः ।। ___ इस पद्यके अनुसार उनके ३ प्रबन्धोंकी चर्चा मिलती है, उनमें पहला दशकुमार: चरित, दूसरा प्रकृत काव्यादर्श और तीसरा प्रबन्ध छन्दोविचिति जो अभी अनुपलब्ध है, कुछ विद्वान् उसके स्थानपर अवन्तिसुन्दरीकथाको रखते हैं।
६ अलङ्कारसारसंग्रह, कर्ता ... उद्भट, समय-ई० ८०० के लगभग। उद्भटभट्ट काश्मीर के निवासी थे। उनके अलङ्कारसारसंग्रहपर प्रतीहारेन्दुराजकी "लघुवृत्ति" नामको टीका है । प्रतीहारेन्दुराजका समय ई० ९५० के करीब है। इनका नाम “इन्दुराज'' भी है । उद्भटने भामहके "का कार" पर "भामहविवरण" नामकी टीका की थी ऐसा उल्लेख पाया जाता है, पर यह अभीतक उपलब्ध नहीं। अलङ्कारसारसंग्रहमें ६ वर्ग हैं, इसमें कारिकाओं की संख्या ७९ है, जिनमें ४१ अलङ्कारोंका वर्णन है, उनके करीब १०० उदाहरण दिये गये हैं। प्रतीहारेन्दुराजकी उक्तिके अनुसार यह ग्रन्थ भामहविवरणका संक्षेप है। इस ग्रन्यकी रचनाके अनन्तर भामहके काव्याऽलङ्कारका प्रचार रुक गया। यह ग्रन्थ अलङ्कारमार्गका प्रतिष्ठापक माना जाता है। इसमें उद्भटने भामहलिखित कुछ अलङ्कारोंको छोड़ भी दिया है । उद्भटने कुमासंभव नामके काव्य की रचना भी की थी ऐसी प्रसिद्धि है, पर अभी वह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है । राजतरङ्गिणीके
"विद्वान्दीनारलक्षण प्रत्यहं कृतवेतनः ।
भट्टोऽभूदुद्भटस्तस्य भूमिभर्तुः सभापतिः ।। इस उक्तिसे उद्भट, राजा जयापीडकी पण्डितसभामें सभापति थे ऐसा विदित होता है।
७ काव्यालङ्कारसूत्र, कर्ता-वामन, समय-ई० ८ वीं शताब्दी लगभग। इस ग्रन्थ में ३ अंग हैं । सूत्र, उसकी वामनकृत वृत्ति और उदाहरण । इसमें ५ अधिकरण और १२ अध्याय हैं। प्रथम अधिकरणमें ३ अध्याय हैं जिनमें कमसे प्रपोजनस्थापना, अधिकारिचिन्ता और रीतिनिश्चय तथा काव्यके अङ्ग और काव्यविशेषोंका निरूपण है। दोषदर्शन नामके द्वितीय अधिकरणमें क्रमसे पद-पदार्थ-दोषविभाग और वाक्याऽर्थदोषविभाग हैं। गुणविवेचन नामके तृतीय अधिकरणमें दो अध्याय हैं, जिनमें क्रमसे गुण और अलङ्कारका तथा शब्द और गुणका विवेक और अर्थगुणका विवेचन है। आलङ्कारिक नामक चतुर्थ अधिकरणमें ३ अध्याय हैं, जिनमें क्रमसे शब्दाऽलङ्कारविचार, उपमाविचार और उपमाप्रपञ्चाऽधिकार हैं। "प्रायोगिक" नामक पञ्चम अधिकरणमें २ अध्याय हैं, जिनमें कमसे काव्यसमय और परशुद्धिका