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________________ (२३) तृतीयखण्डमें १७ अलंकारोंकी चर्चा है और नाटके महत्वपूर्ण विषर्योका उल्लेख हैं। इसमें प्रायः नाटयशास्त्रका अनुसरण है। ४ काव्याऽलङ्कार, लेखक-भामह । समय-ई. सप्तम शताब्दीका आदि भाग-बहुत विद्वान् भामहको आदिभ अलंकारशास्त्री मानते हैं। इनके और दण्डीके पूर्वाऽपरभावमें बहुत मठभेद देखा जाता है। काव्यालंकारमें छः परिच्छेद हैं और ४०० पद्य है। प्रथम परिच्छेदमें काव्यशरीरका निर्णय. द्वितीय और तृतीयमें अलंकार निर्णय, चतुर्थमें ५० पद्योंमें दोषनिर्णय, पश्चममें न्यायनिर्णय अर्थात् न्याय और वैशेषिकके प्रमाण और पञ्चाऽवयव वाक्योंका विचार है । और षष्ठ परिच्छेदमें शब्दशुद्धिका विवेचन किया गया है। उद्भट भट्टने इसकी टीका की है और प्रतिहारेन्दुः राजने लघुवृत्ति लिखी है। विद्यानाथ, स्य्यक, अभिनवगुप्त और मम्मटभट्ट आदि आचार्गाने भामहका संमानपूर्वक उल्लेख किया है। रस ही काव्यका मूल है इस बातको भामहने स्वीकार नहीं किया है । दण्डीके ही समान उन्होंने गुण और अलंकारके विशेष भेदका उल्लेख नहीं किया है। भामह अलंकारसम्प्रदायके प्रवर्तक के रूपमें माने गये हैं। ग्रन्थके अन्त में उन्होंने अपनेको "रक्रिलगोमिसूनु" लिखा है, इस. लिए उन्हें कुछ लोग बौद्ध मानते हैं, परन्तु यह मत सर्वसम्मत नहीं है। क्योंकि मामाने अपने ग्रन्थ में कहीं भी बुद्धका उल्लेख नहीं किया है, संभवतः वे काश्मीरनिवासी ब्राह्मण थे । काव्याऽलंकारमें अधिकांश अनुष्टुप् छन्द हैं, बीच बीच में अन्य छन्द भी हैं । काव्यकी आधारभूत भाषाओंमें उन्होंने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश इन तीन भाषाओंको माना है । काव्य के गद्य और पद्य दो भेद दिये हैं। फिर विषयकी दृष्टि से भामहने वृत्तदेवादिचरितशंसि, उत्पाद्यवस्तु, कलाश्रय और शास्त्राश्रय इस प्रकार काव्यका विभाजन किया है । उन्होंने काव्यके ५ भेदोंका भी परिगणन किया है, जैसे-सर्गबन्ध ( महाकाव्य ), अभिनेयाऽर्थ ( दृश्यकाव्य ), आख्यायिका, कथा धौर अनिबद्ध । इनमें भामहने अभिनेयार्थका केवल उद्दश लिखकर विशेष चर्चा नहीं की है । गौडी और वैदर्भीके भेदको भामहने निरर्थक कहा है। काव्यादर्श, लेखक-दण्डी, समय-ई० सप्तम शताब्दीका उत्तरार्द्ध। कविराट दण्डीके काव्यादर्शमें तीन परिच्छेद हैं। कुछ लोगोंने तृतीय परिच्छेदके कुछ श्लोकोंको अलग कर चतुर्थ परिच्छेद बना डाला है। इसकी पद्यसंख्या ६६० है । इसमें अधिकतर अनुष्टुप छन्द हैं, बीच बीच में अन्य छन्दोंका भी प्रयोग किया गया है । काव्यादर्शमें प्रथम परिच्छेद में कार का लक्षण और उसके भेद, महाकाव्यका लक्षण, गद्यके भेद, कथा और आख्यायिका में अभेद, मिश्र काव्य, काव्य में भाषाओंका भेद, हैदर्भी और गोडी मार्ग (रीति ), वैदर्भीके १० गुण, कवित्वकी उत्पत्ति इतने विषय हैं । द्वितीय में अलंकारका लक्षण अलंकारोंके नाम और ३५ अर्थालंकारों
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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