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________________ ( २१ ) ५ विद्वन्मोदतरङ्गिणी : चम्पू कवि - वामदेव रामदेव वा विरजीव भट्टाचार्य, समय३० १७०३ | वामदेव, रामदेव वा चिरञ्जीव मट्टाचार्य राघवेन्द्र के पुत्र थे । इनके दो ग्रन्थ उपलब्ध हैं, अलङ्गारशास्त्रमे काव्यविलास और चम्पूमें विद्वन्मोदतरङ्गिणी । विद्वन्मोदतरङ्गिणी छोटी सी चम्पू है, इसमें ८ तरङ्ग हैं। इसमें कविने अपना परिचय देकर शैव और वैष्णव आदि सम्प्रदायोंके आचायोंके शास्त्रार्थका प्रदर्शन कर क्रमपूर्वक समी दर्शनों का परिचय दिया है. रचना प्रौढ है । इसमें न्यायशास्त्र की विशेषता दिखलाई गई है । अन्तमें हरि और हरका अभेद प्रदर्शित है । इसमें कवित्वसे अधिक पाण्डित्यका अंश है । यह अलङ्कारशास्त्र अलङ्कारशास्त्र के लक्ष्यभूत कुल काव्यों की संक्षिप्त चर्चा है । इसमें कालक्रमका अनुसरण न कर स्मृतिपथप्राप्त कुछ ग्रन्थोंका परिचय देनेका प्रयास किया है । अब अलङ्कारशास्त्र अलङ्कारग्रन्थोंका और उनके रचयिताओंका वर्णन करते हैं । १ अग्निपुराण, कर्त्ता - व्यास, समय- द्वापरयुगका अन्तिम भाग | व्यासके १८ पुराणों में अन्यतम । संस्कृत वाङ्मय में इतिहास में महाभारत और पुराण में अग्निपुराण विश्वकोषके रूप में माने गये हैं । श्रीकाणे इसे भरत, भामह, दण्डी, आनन्दवर्द्धन और संभवतः भोजके भी अनन्तरवर्ती मानते हैं। अग्निपुराण में क्रमबद्ध रूपसे अनेक विषयों का सङ्कलन है । इसकी श्लोकसंख्या १२००० है । कलकत्ता में मुद्रित मोर- संस्करण के अनुसार ३३७ वें अध्यायसे ३४७ वें अध्याय तक कुल ११ अध्यायोंमें साहित्य विषयोंका निरूपण किया गया है । जैसे- काव्यादिलक्षण, नाटकनिरूपण, शृङ्गारादि: रसनिरूपण, रीतिनिरूपण, नृत्यादिरङ्गकर्मनिरूपण, अभिनयादिनिरूपण, शब्दालङ्कार, अर्थालङ्कार, शब्दाऽर्थाऽलङ्कार, काव्यगुण विवेक और काव्यदोषविवेक । इसमें काव्य ३ भेद किये गये हैं- गद्य, पद्य और मिश्र । गद्यका लक्षण है- "अपद: पदसन्तानः " अर्थात् चरणरहित पदसमूहको “गद्य" कहते हैं। उसके भी ३ भेद हैंचूर्णक, उत्कलिका और वृत्तगन्धि । गद्यकाव्य ५ भेद होते हैं-आख्यायिका, कथा; खण्डकथा, परिकथा और कथानिका । इन सबके पृथक् पृथक् लक्षण हैं । चतुष्पदी अर्थात् जिसके ४ चरण होते हैं उसे "पद्य" कहते हैं। उसके २ भेद होते हैं - वृत्त और जाति । जहां वर्णोंका परिगणन होता हैं उसे "वृत्त" और जहाँ मात्राओंका परिगणन होता है उसे "जाति" कहते हैं। वृत्तके भी ३ भेद होते हैं—सम, अर्द्धसम और विषम | काव्यके फिर ७ भेद होते हैं— महाकाव्य, कलाप, पर्याबन्ध विशेषक, कुलक, मुक्तक और कोष । इसी प्रकार इसमें दृश्य काव्य अर्थात् नाटकआदिका भेद लक्षणपूर्वक किया गया है । इसी प्रकार शृङ्गार आदि ९ रस, स्थायी भाव और विभाव आदि भाव, नायकों के भेद, नायकोंके सहचर, नायिकाभेद नायक ८ गुण, नायिकाके १२ विभाव, पाञ्चाली आदि ४ रीतियां, भारती यादि ४ वृत्तियाँ, नृत्तका निरूपण, सात्विक आदि ४ अभिनय, सलक्षण शब्दालङ्कार
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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