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द्रौपदीकी वेणीका संहरण करनेकी घटनाका इसमें वर्णन है । यह उच्चकोटिका बाटक है ।
चम्पूकाव्य
संस्कृत साहित्य में चम्पूकाव्य की भी विशेषता है । हम कुछ चम्पूकाव्योंका वर्णन करते हैं । गद्यपद्यमय काव्यको “चम्पू" कहते हैं ।
१ नलचम्पू : कवि - त्रिविक्रम भट्ट । समय ई० ९१५ । संस्कृत साहित्य के चम्पूग्रन्थो में नलचम्पू वा दमयन्तीकथाका स्थान महत्त्वपूर्ण है । त्रिविक्रम भट्ट देवादित्य के पुत्र थे। कहते हैं कि ये पहले बहुत मूर्ख थे, पार्वतीके प्रसादसे पीछे बड़े विद्वान् हुए । मलचम्पूमें ७ उच्छ्वास हैं । इसमें दमयन्ती के स्वयंवरमात्रका वर्णन होनेसे यह अधूरी मालूम होती है । यह पाण्डित्यपूर्ण ग्रन्थ है, इसमें विशेष कर श्लेषका गुम्फन प्रचुर मात्रा में हैं, उसे सुलझानेके लिए मस्तिष्क चकरा जाता है परन्तु वासवदत्तासे यह सरल और सरस है । अर्थालङ्कारकी अपेक्षा शब्दालंकार में कवि का अधिक संरम्भ प्रतीत होता है। इसके गद्यभागमें ओजोगुणका तथा पद्यभागमें पाञ्चाली रीतिका अनुसरण पाया जाता है । इसकी टीकाओं में चण्डपालकी विषमपदप्रकाश टोका प्राचीन प्रसिद्ध और उपलब्ध है । इसके कतिपय पद्य अति मनोहर और प्रसिद्ध हैं ।
२ रामायणचम्पू : कबि - राजा भोज । समय- ई० १०५० । भोजकृत यह चम्पू पाँच काण्डों तक ही उपलब्ध है । इसको पूर्ण करनेके लिए लक्ष्मण भट्टने षष्ठ काण्डकी और वेटराय दीक्षितने सप्तम काण्डकी रचना की है।
रामायणचम्पू में रामायणकथाका मनोहर वर्णन है । यह चम्पू शब्दाऽलंका रोंसे सजी हुई है। इसमें कविका पाण्डित्य और शब्दाऽलंकार में सविशेष अभिनिवेश होने से रचना क्लिष्ट है ।
३ विश्वगुणादर्श चम्पू : कवि - वेङ्कटाऽध्वरी । समय - ई० १६४० | वि श्रीसम्प्रदाय के थे । इसमें भारत के प्रसिद्ध तीर्थं आचार्य, और नगर आदिके गुण और दोषोंका मनोहर रूप में वर्णन है । इसमें कुल १३ प्रकरण है । अलंकारोंपर कविने खूब ध्यान दिया है, भाषा कुछ क्लिष्ट है । अपने विषयका यह अनूठा ग्रन्थ है ।
४ भारतचम्पू : कवि - अनन्त ! समय - कदाचित ११ वीं शताब्दी । इन्होंने भागवतचम्पू और भारतचम्पू दोनों ग्रन्थोंकी रचना की है । भारतचम्पूमें महाभारतकी कथा दी गई है। इसमें १२ स्तबक हैं। इसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार प्रचुर परिमाण में हैं, श्लेषकी भी न्यूनता नहीं है। कुछ क्लिष्ट होनेपर भी इसमें माधुर्यं और प्रसाद गुण भी यथेष्ट हैं । वर्णनशैली बड़ी मनोरम है, यह समस्त चम्पू ग्रन्थोंमें श्रेष्ठ है। इसमें नारायण सूरिकी प्राचीन टीका उपलब्ध है ।