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________________ राजाके मन्त्री भूरिवसुकी कन्या माउतीका विदर्भराजके मन्त्री देवरातके पुत्र माधवके साथ प्रणय और परिणयका मनोहर वर्णन है, इसमें अनेक सङ्कट और इनके परिहारका विशद और मनोरम चित्रण है। इसमें कई पद्य मेघदूतके टक्करके हैं, पर रूपके लिए अनुपयुक्त पाण्डित्यपूर्ण शैलीमें यह रचना है । १० अनर्घराघव नाटक: कवि-मुरारि, सपय ८५० ईसा-पूर्व । श्रीरामचरितमें आश्रित यह नाटक है। इसके कर्ता मुरारि कवि मीमांसाके महान् विद्वान थे, जैसे मीमांसामें भट्ट और गुरुके सम्प्रदायोंसे इनका निराला मार्ग है वैसे ही इनका नाटकमें भी निराला मार्ग है, अतः यह प्रसिद्ध उक्ति है-"मुरारेस्तृतीयः पन्थाः" । इस ग्रन्थसे इनका प्रौढ़ पाण्डित्य परिलक्षित होता है परन्तु काव्यमाधुयंग आस्वाद कम ही मिलता है । समस्त और दुरूह पदों के भरमारसे नाटक बहुत क्लिष्ट है । इसमें ७ अङ्क है। ११ मुद्राराक्षस : कवि-विशाखदत । समय-ई० ८५०, इसमें सात अक्क हैं । इसमें चाणक्यकी सहायतासे अपने पिता नन्दके सिंहासनार आरूढ चन्द्रगुप्तका वृतान्त वर्णित है । नन्दके पूर्व मन्त्री राक्षस और चाणक्यके राजनीतिक दावचछा इसमें पूर्णतया वर्णन है । नाटक प्रौढ पाण्डित्यपूर्ण और मनोहर है । १२ प्रसन्नराघव : कवि-जयदेव । समय ई० १२०० और १३०० का मध्य भाग । यह नाटक भी भगवान रामके चरित्रपर अवलम्बित है। इसमें रामके वनवाससे लेकर युद्धकाण्डतकको घटनाका मनोरम और कुतूहलबर्चस वर्णन है। कवित्व का परिणाम देखा जाता है । क व जयदेव मिथिलाके प्रखपात ताकि और अलङ्कारशास्त्री भी थे, इनका अलङ्कार ग्रन्थ चन्द्रालो सुपसिद्ध है। १३ मृच्छकटिक प्रकरण : कवि-शूदक ! समय-ईसाकी द्वितीय शताब्दी । य॥ दश अङ्कोंसे युक्त है । इसमें उज्जयिनीके सार्थवाह ब्राह्मग चारुत्त और वसन्तसेवा नामको वारविलासिनीकी प्रणयघटनाका मनोरम वर्णन है। इसमें राजनीतिक कान्तिका भी सबीर चित्रग है । संस्कृत साहित्यमें यह बेजोड़ है। इसके पूर्व चार अङ्क मासके पादत्त नाटक मिलते-जु से हैं। इसमें राजश्याल शारकी दुष्टता; चारुदतकी उदारता और वसन्तसेनाका अकृत्रिम प्रणय इत्यादि विषयोंका अतिशय आकर्षक वर्णन है । शुतार और करुण रस हा परि इसमें देखते ही बनता है। १४ वेणीसंहार नाटक: कवि-भट्टनारायण। समय-ई० ६७५ । इसमें सात अङ्क हैं। महाभारतके पाण्डव-कौरवयुद्ध का इसमें ओज गुगसे परिपूरित वर्णन है, बीच-बीवमें प्रसाद गुगका भी इसमें निबाह हुआ है । नाटके बहुत से निगमों। परिपालन इसमें किया गया है। इसमें मुख्य वीर रस है, स्पल-स्यलार काग और शृङ्गार रस मी वागत हैं। अनमें भीम अग्नी प्रतिज्ञाके अनुसा दुःशासनके रुधिरसे
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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