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"काव्येषु नाटकं रम्यं, तत्राऽपि च शकुन्तला ।”
अन्तर्जगत् और बहिर्जंग का चित्रण करने में कवि अपनी सानी नहीं रखते हैं । विश्वर्वाचित यह नाटक है ।
३ मालविकाग्निमित्र नाटक : कवि कालिदास । मालविका और अग्निमित्रके प्रणय और परिणय इसमें अतिमनोरम शैलीसे प्रदर्शित है। कातिके रूपकों में यह प्रथम रचना जान पड़ती है ।
४ विक्रमोर्वशी : इस त्रोटकर्ता भी महाकवि कालिदास हैं । श्रीमद्भागवत आदि पुराणों में वर्णित अप्सरा उर्वशी और चन्द्रवंश के महाराज पुरूरवाके प्रणय और विप्रलम् शृङ्गार इस ग्रन्थ में बहुत ही कुशलतासे प्रदर्शित हैं ।
५ रत्नावली, प्रियदर्शिका, (नाटिका) नागानन्द ( नाटक) : कवि - श्रीहर्ष । समय - ६०६-६४६ ईवी । थाने के महाराज श्रीहर्ष वा हर्बर्द्धन के तीन रूपक प्रसिद्ध हैं, उनमें रत्नावली और त्रिवदर्शिका उररूपकके भेद नाटिका है । रत्नावली - इसमें राजा उदयन और रत्नावलीकी प्रणयकथा मनोरन रूपसे वर्णित है । इसमें नाट्यशास्त्र के प्रचुर नियमों का परिपालन किया गया है। इसमें ४ अङ्क हैं। प्रियदर्शिका : इसमें भी राजा उदयन और राजा दृढवर्मा की पुत्र प्रका प्रणयकथा वर्णित है । इसमें भी ४ अङ्क हैं ।
६ नागानन्द | यह पाँत्र अक्कों का नाटक है, इसमें विद्याधर राजपुत्र जीमूतवाहन और मलयवतीकी प्रणयकथाका वर्णन है । इसमें जीमूतवाहन, गरुड भोज्य एक नागके वेदले अपना शरीर सौंन कर उसकी रक्षा करते हैं, और नागों को आनन्द देते हैं । कथाके आधारपर इसका कथानक है ।
७ महावीरचरित, उत्तरराम वरित और मालतोमात्र ये तीनों कविवर मत्रसूतिकी कृतियाँ हैं | भभूतिका समय-ईसाकी सातवीं शताब्दी है ।
महावीरचरित और उत्तररामचरित नाटक हैं और मालतीमाधव प्रकरण है । महावीर भगवान् रामचन्द्रके युद्धकाण्डका चरित्रचित्र है, इसमें प्रधान और रप है -अन्य रस योग हैं। वह समास की अधिकता विष्ट है, परन्तु कतिपय इसमें अल मनोहर है। इसमें ७ अङ्क हैं ।
८ उत्चरित : होता है कर तेजी
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भूका उत्कृष्ट संगोवाल नाटक है। सीतानिर्वासन से सके कि कविने जातकको पराकाष्ठा सेना
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है। इसमें दश हैं। इसमें वीके