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हर्षवर्द्धनके चरित्र के प्रकाशनमें प्रसिद्ध हर्षचरित ऐतिहासिक आख्यायिका ग्रन्थ हैं। इनमें ८ उच्छ्वास हैं। प्रथम और द्वितीय उच्छवासमें कविने अपने वंशका अनुकीर्तन किया है, अवशिष्ट छः उच्छ्वासोंमें हर्षवर्द्धनका अतिमनोरम शैलीमें वर्णन किया है। यद्यपि कादम्बरीके सदृश इसमें परिष्कृत प्रौढि नहीं है, यह कविके गद्यकाव्यमें प्रारम्भिक कृति विदित होती है । तथाऽपि स्थल-स्थल में इस में करुणरससे ओत-प्रोत अत्यन्त हृदयद्रावक वर्णन मिलता है । बीच बीचमें वीररस और शान्तरसकी मनोरम झांकी भी मिलती है । पहलेके दो उच्छ्वासोमें रौद्र और शृङ्गार रसका अतिमनोरम चित्रण किया गया है। आरम्भमें कई पद्योंमें पूर्ववर्ती कालिदास आदि कवियोंकी प्रशंसा अतिशय मनोहर है । श्रीहर्षदा पूरा चरित वणित न होने से यह ग्रन्थ अधूरा-सा प्रतीत होता है । इसका कारण अज्ञात है।
४ कादम्बरी-कवि-बाणभट्ट । समय-ख० सातवीं शताब्दीका आरम्भ । कादम्बरी बाणभट्टकी लोकाऽतिशायिनी कृति है। यह कयाके रूपमें लिखी गई है, इसकी क्या कथा, क्या लेखनशैली क्या वर्णनकी मधुरता, देखते ही बनती है । स्थल-स्थलपर गोडी रीतिका आडम्बर होनेपर और उपमा और श्लेष आदि अलङ्कारोंकी प्रचुरता होनेके साथ-साथ कुछ दुरूहता होनेपर भी काव्यरसके आस्वादकी लोलुपतासे उत्सुकता निरन्तर बढ़ती रहती है-तबीयत ऊबती नहीं है । महाश्वेता और पुण्डरीकके प्रणयका; तथा कादम्बरी और चन्द्रापीडके अनुरागका, विन्ध्याऽटवीका तथा जाबालिके आश्रमका वर्णन किसे आकृष्ट नहीं करता है ? विश्वके गद्यकाव्योंमें यह अप्रतिम और मनोहर है। बृहत्कथाके आधारपर इसका कथानक है। परन्तु दुःखकी बात है कि यह ग्रन्थ अधूरा ही है, पूर्वाद्ध मात्र कविने लिखा है उत्तरार्द्ध उनके पुत्रने लिखकर ग्रन्थको पूर्ण किया है।
. नाटक रूपक आदि १ स्वप्नवासवदत्ता : नाटक, कर्ता-कविवर भास । समय-ईसा-पूर्व चतुर्थ शताब्दीका आरम्भ । स्वप्नवासवदत्ता आदि तेरह रूपक भासके नामसे पाये गये हैं। उनमें स्वप्नवासवदत्ता और चारुदत्त सबसे उत्तम हैं। भासके सभी रूपक प्राञ्जल चली, वर्णनकी उदात्तता, सूक्ष्म मनोविज्ञान और शृङ्गार, वीर आदि रसोंकी मधुरतासे किस सहृदयके हृदयको आकृष्ट नहीं करते हैं ? मृच्छकटिकका उपजीव्य ग्रन्थ "चारुदत्त" प्रतीत होता है । महाकवि कालिदासने भी अपने पूर्ववर्ती कवियोंमें सबसे प्रथम भासका उल्लेख किया है। भासके १३ रूपक उपलब्ध हैं, जैसे-प्रतिज्ञायौगन्धरायण, स्वप्नवासवदत्त, प्रतिमा नाटिका, पञ्चरात्र, अभिषेक, बाल परित, मध्यमव्यायोग, दूतबाक्प, दूतघटोत्कच, कर्णभार. ऊपभङ्ग, चारुदत्त और अविमारक।
२ अभिज्ञानशाकुन्तल : नाटक, कर्ता-महाकवि कालिदास । समय-ईसासे ५७ वर्ष पूर्व : अभिज्ञानशाकुन्तल कालिदासका सर्वश्रेष्ठ नाटक है । महाभारतके आधारपर इसका कथानक है । शकुन्तला और दुष्यन्नका प्रणय, उनका विप्रलम्भ शृङ्गार, इसमें देखते ही बनता है। कहा भी जाता है
२ सा० भू.