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________________ ( १६ ) वर्णन किया है। ग्रन्थमें समष्टि श्लोकसंख्या १४३९ है। इसमें प्रत्येक स्तोत्र भित्र पिन छन्दोंमें महाकाव्यके सर्गके ढङ्गपर लिखे गये हैं। इसमें प्रसाद और माधुर्य गुण परिपूर्ण है, इसका परिपाक भी बहुत आकर्षक है। इसमें १७०० ईस्वीमें राजानक रत्नकण्ठसे विरचित "लघुपश्चिका" नामकी टीका उपलब्ध है। गद्यकाव्य १ दशकुमारचरित-कवि-दण्डी। ( समय ६०० ईस्वी लगभग ) यह ग्रन्थ कथारूप है। इसमें अभी ३ विभाग उपलब्ध है, पूर्वपीठिका, दशकुमारचरित और उत्तरपीठिका । पूर्वपीठिका में पाँच उच्छ्वास, दशकुमारचरितमें आठ उच्छ्वास हैं और उत्तरपीठिका संक्षिप्त है। दण्डीका यह अन्य विकल रूपमें उपलब्ध नहीं हैं। इसका कुछ अश नष्ट हुआ और कुछ अंश पीछेसे जोड़ा हुआ प्रतीत होता है । जो हो, इसमें दशकुमारों जिनमें राजवाहन और शेष ९ मन्त्रिपुत्रोंके चरित्रका वर्णन है। पूर्वपीठिकामें दो कुमारोंका चरित्रवर्णन है, कुमारचरितके आठ उच्छ्वासोंमें ८ कुमारोंके चरित्र वर्णित हैं। उत्तरपीठिकामें कथासमाप्ति की गई है। इसकी शैली सुबन्धुकी वासवदत्ताकी-सी श्लेषबहुल और गौडीमें निबद्ध नहीं है, न बाणभट्टकाःसा वर्णनविस्तर है। कुछ अश्लीलता होकर भी इसकी कथाएं अद्भुत और चित्तको आकृष्ट करनेवाली है । स्थल-थलपर अनुप्रासकी प्रचुरता प्रन्थको अलंकृत करनेवाली है। २ वासवदत्ता-कवि-सुबन्धु । (समय ख० सप्तमशतकका आरम्म) संस्कृत साहित्यमें सबसे प्राचीन गद्य काव्य वासदत्ता है, इसके कर्ता कविवर सुबन्धु हैं, इनके विषयमें ऐसी प्रसिद्धि है सुबन्धुर्वाणभट्टश्च कविराज इति त्रयः। - वक्रोक्तिमार्गानपुणश्चतुर्थो विद्यते न वा॥ इसकी कथा न इतनी सिद्ध और न रोचक ही है, पर कविने इसमें अपने काव्यशिल्पकी हद कर दी है, इनका ग्रन्थ प्रत्यक्षरश्लेषमय है, इसको कविने स्वयम् स्वीकार किया है । बाणभट्ट कविने "कवीनामगलर्को नूनं वासवदत्तया" ऐसा लिखकर इनकी प्रशंसा की है। महापण्डित सुबन्धुने कवित्वसे अधिक अपने पाण्डित्य का ही प्रदर्शन किया है। वासवदत्तामें कादम्बरीके समान लम्बे लम्बे पद और वाक्य नहीं हैं, पर श्लेषको बतिप्रचुरतासे सोचते सोचते पाठकका धैर्य टूटने लगता है। जो हो इसकी शैली पाण्डित्यपूर्ण है, इसमें सन्देह नहीं। ३ हर्षचरित-कवि-बाणभट्ट ( समय-ख० षष्ठ शताब्दी ), थानेसरके महाराज
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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