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संभव, किरातार्जुनीय, शिशुपालवध और , नैषधीयचरित ही पञ्च काध्यकी प्रसिद्धिवाले हैं इनका सामान्य परिचय दे चुके हैं ।
१०. बुद्धचरित-समय-ख. द्वितीय शताब्दी, बौद्ध दार्शनिक अश्वघोषने बुद्धचरितकी रचना की है । इसमें गौतम बुद्धके चरितका वर्णन है । यह चौदह सर्गोतक ही उपलब्ध है। इसमें पहले २८ सर्ग थे, जो चीनी और तिब्बती अनुवादों से जाने जाते हैं । प्रसाद गुणसे अलङ्कृत यह काव्य है, इसके और अश्वघोषके ही सौन्दरनन्दके कतिपय पद्य कालिदासके कुमारसंभव और रघुवंशके पद्योंसे मिलते जुलते हैं, परन्तु कालनिर्णयसे कालिदासका अनुकरण अश्वघोषने किया है यह सावित होता है।
११ सौन्दरनन्द-यह महाकाव्य भी मश्वषोषकी रचना है। इसमें १९ सर्ग हैं इसमें गौतम बुद्धके सौतेले भाई नन्द, एवम् नन्दकी पत्नी सुन्दरीकी मनोहर कथाका चित्रण है । बुद्धके उपदेशसे नन्द बुद्धधर्ममें दीक्षित होता है, परन्तु अपनी पत्नी सुन्दरीमें आसक्ति भी छोड़ने में असमर्थ होता है। वासना और त्यागका संघर्ष इसमें मनोहर रूपमें दर्शाया है, अन्त में सरसङ्गति और सदुपदेशके फलस्वरूप नन्द वासनाके उच्छेदमें समर्थ होता है।
१२ हरविजय महाकाव्य (कवि-रत्नाकर)-समय ० नवम शताब्दी । प्राचीन संस्कृत साहित्यमें यह सबसे बड़ा महाकाव्य है । इसमें ५० सर्ग हैं। इसमें महादेवजीके अन्धकाऽसुरके वधकी कथाका विस्तीर्ण और मनोहर शैलामें वर्णन है। इसके कर्ता महाकवि रत्नाकर हैं। इसमें इन्होंने बाणभट्टको शंलीका अनुकरण स्वीकार किया है । इसमें यमक तथा अन्य शब्दालङ्कार तथा चित्र कान्यकी रचना प्रचुर होनेपर भी अर्थालङ्कारोंको भी स्थान-स्थानपर अच्छी तरहसे दरसाया है। इसमें प्रचुर छन्दोंका भी प्रयोग किया गय है । इस महाकाव्यकी अलकविरचित "विषमपदोद्योत" नामक टीका प्रकाशित हुई है। .. १२ विक्रभादेवचरित, कवि-विहण-समय ख० ११ शताब्दी । यह ऐतिहासिक महाकाव्य है। इसमें छठे विक्रमादित्यके जीवनचरित्रका वर्णन है। इसमें १८ सर्ग हैं। इसमें पहले सर्गसे तेरहवें सर्गतक विक्रमादित्यके पूर्वजोका और पिछले चौदहवेसे अठाहरवें अर्थात् ५ सर्गोमें विक्रमादित्यका वर्णन है । यह उच्चकोटिका महा. काव्य है। इसमें महाकवि विलणने कालिदासका अनुकरण किया है। कर्मी रीति प्रसाद गुण, ध्वनि, रस आदि और अलङ्कारोंका प्रयोग यहाँ स्थान-स्थानपर मिलता है।
१३ स्तुतिकुसुमाञ्जलि (कवि-जगदरभट्ट) (समय ई० १३०० करीब) काश्मीरके जगद्धरभट्टकी स्तुति कुसुमाञ्जलि उत्कृष्ट काव्य है। शान्त रससे बोतप्रोत यह कान्य अतिशय मनोहर शैलीसे विरचित है। इसमें भगवान् शङ्करकी चित्ताकर्षक भक्तिसे परिपूर्ण कुल ३८ स्तोत्र हैं, अन्तमें सोलह पद्योंमें कविने अपने वंशका