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नगरमें हुआ था। इनके पितामह सुप्रभदेव गुजरातके राजा वर्मलातके प्रधान मन्त्री ये। इनके पिताका नाम दत्तक था। माघकवि धनाढ्य और दानशील थे। इनका समय लगभग ६७५ ईसवी है। शिशुपालवधमें युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें चेदि देशके राजा शिशुपालके बधकी कथाका मविस्तर वर्णन पाया जाता है। इसमें कुल २० मर्ग और १६५० पद्य हैं । इसमें कविने बहुत स्थानोंपर भारविका अनुकरण किया है । इसमें राजनीतिके साथ-साथ पर्वत, समुद्र, ऋतु और जलक्रीडा आदि विषयोंका बड़ी प्रोढिसे अलङ्कारपूर्ण वर्णन किया गया है। चित्र काव्यमें भी कवि भारविसे आगे बढ़े है। माघ कवि वैयाकरण थे, अतः संस्कृत भाषामें उनका पूग अधिकार था । 'माघे सन्ति त्रयो गुणाः" इस उक्तिके अनुसार माघमें उपमा, अर्थगौरव और पदलालित्य इन तीनों गुणोंकी समष्टिकी चर्चा पाई जाती है। इनका पन्थ शिशूपाल वध मात्र उपलब्ध है। इनके नामसे फुटकर कुल पद्य सुभाषितग्रन्थ आदिमें मिलते हैं। शिशुपालवधमें १७ टीकाओंकी प्रसिद्धि है। उनमें वल्लभदेवकी सन्देहनिषौषधि, चारित्रवर्द्धनकी टीका और मल्लिनाथकी सर्वकषा टीका बहुत प्रसिद्ध हैं ।
९ नैषधीयचरित समय-ख० १२ शताब्दी, नैषधीयचरितके कर्ता श्रीहर्ष मिश्र हैं । ये दर्शनशास्त्रके महान् विद्वान् और खण्डनखण्डखाद्य जैसे अप्रतिम ग्रन्थ के रचयिता है। इनके पिताका नाम हीर और माताका नाम मामल्लदेवी वा अल्लदेवी था। इन्होंने चिन्तामणि मन्त्रका अनुष्ठान किया था जिसके फलस्वरूप यह कृति "नैषधीयचरित" है। ये काशीनरेश विजयचन्द्रके सभापण्डित थे ! इनका समय ईसवी १२ शताब्दी है । नैषधीयचरितमें निषधनरेश नलके दमयन्तीसे पाणिग्रहणके विषयका अवलम्बन किया है । कथानकका उपजीव्य मूलतः महाभारत है। महाकविने अपनी कल्पनाकुचिकासे अतिशय मनोहर रचना की है। स्थान-स्थानपर वैदर्भी ओर गोडी रीतिका, प्रसाद और ओज गुणका मणिकाञ्चनसंयोगके समान संमिश्रण है। रस, ध्वनि, और भावका आधिक्य और उपमा, श्लेष आदि अलङ्कारोंका विलास और अनेक प्रकारके छन्दोंका इन्होंने स्वच्छन्दतापूर्वक चमत्कार दिखलाया है। संस्कृत भाषापर इनका पूर्ण अधिकार था, क्या लौकिक क्या शास्त्रीय सभी विषयपर इन्होंने आधिकारिक रूपमें प्रकाश डाला है और पूर्ववर्ती सव कवियोंको पीछे छोड़ दिया है। अत एव कहा जाता है-"उदिते नैषधे भानो क्व माघः क्व च भारविः" : अत एव कहा जाता है "नैषधं विद्वदौषधम्"। प्रत्येक सर्गमें सौसे अधिक पद्य हैं । यह महाकाव्य २२ सर्गतक ही उपलब्ध है, परन्तु नलके दमयन्तीपरिणयतकके चरित्रके देखे जानेसे अन्य सर्गों की भी सत्ताकी कल्पना होती है, अस्तु । इस प्रकार अति.प्रसिद्ध लघुत्रयी और बृहत्प्रयी नामके काव्योंकी चर्चा की गई। इसी प्रकार संस्कृत. साहित्यमें पक्ष काव्योंकी पठनप्रणाली पहले रही उनमें पूर्वोक्त रघुवंश, कुमार.