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________________ द्वितीयः परिच्छेदः आरोपाध्यवसानाभ्यां प्रत्येकं ता अपि द्विधा । ताः पूर्वोक्ताश्चतुर्भेइलक्षणाः। विषयस्यानिगीणभ्यान्यतादात्म्यातीतिकृत् ॥ ८ ॥ सारोका, स्पान्निगीणस्य मता सामानिका। पुनरपि लक्ष माया वैविध्य प्रतिपादयति-मारपेति । आरोपाऽवताभ्या ता: प्रत्येकाप द्विधा अत्यन्वयः। आरोपाऽध्यवसानानाम् -विषयविषयिण देन उपन्यास आरोपः, विषयिणा विषयस्य तिरोभाव: अध्यबसानम्, ताभ्यां, ता:लक्षणाः, प्रत्येकमपि, द्विधा - द्वाभ्या प्रकाराभ्यां, बोद्धमा इति शेषः । लाः- पूर्वोता: चतुर्भेदलक्षणा: = दो प्रयोजने च-उपादानलक्षणा लक्षणलक्षणा चानयोः भेदाभ्याम् 'इति शेषः । ___अथ साऽरोपां लक्षणां लक्षयति-विषयस्येति । (विषयिणा ) अनिगीर्णस्य विषयस्य अन्यतादात्म्यकृत् साऽऽरोपा स्यादित्यन्वयः ॥ ८ ॥ (विषयिणा = आरोप्यमाणेन, लक्ष्याऽर्थेन श्वेतगुणविशिष्टेन इति भावः ), अनिगीर्णस्य अतिरोहितस्य, विषयस्य = आरोपनिषयस्य, अन्यतादात्म्यप्रतीतिकृत्= अन्येन (विषयिणा = श्वेतगुणविशिष्टेन लक्ष्यार्थेन ) तादात्म्यप्रतीतिकृत् ( अभेदप्रतीतिकृत ) या लक्षणा, सा सारोपा स्यात् । आरोपेण सहिता सारोपा ॥८॥ ही कर्मको करते हुए सौ साल तक सुखपूर्वक जीते रहे। इस वाक्यार्थमें अपकार आदियोंके अन्वाकी सिद्धि के लिए अपकृत आदि शब्द अपने स्वरूपका समर्पण करते हैं। अपकारीके प्रति. उपकार आदिका प्रतिपादन करनेसे मुख्याऽर्थका बाध ( अन्वयाऽनु. पात्ति ) है । वैपरीत्यरूप सम्बन्ध है। अपकारका आधिक्य फल ( प्रयोजन ) है । इसे ही जहत्स्वार्या ( जहल्लक्षणा ) कहते हैं ॥ ७ ॥ आरोप और अध्यवसायसे पूर्वोक्त चार भेदोंवाली लक्षणाके फिर दो भेद होते हैं । विषय ( उपमेय ) और विषयी ( उपमान ) के भेदसे स्थितिको “आरोग्" और जहाँ पर विषयी ( उपमान ) से विषय ( उपमेय ) का तिरोभाव हो जाता है उसे "अध्यवसान" कहते हैं। इस प्रकार फिर दो भेद हो जाते हैं, यह अभिप्राय है । अनिगीर्ण = अनाच्छादित अर्थात् (शब्दसे प्रतिपादित ) विषय ( उपमे)का अन्य. (विषयी अर्थात् उपमान ) से नादात्म्य (अभेद) की प्रतीति करने वाली को "सारोपा" कहते हैं ।। ८ ॥ निगीग:-आच्छादित अर्थाः (मन्दसे) अतिरादित विषय (उपमेय) का अन्य. (विषयी अर्थात् उपमान ) से तादात्म्य ( अभेद ) की प्रतीति करनेवालीको साध्यवसानि का कहते हैं।
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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