________________
( १२ ) उल्लेख मिलते हैं, परन्तु उनमें एक भी उपलब्ध नहीं। सम्प्रति काव्योमें लघुत्रयी और बृहत्तयीका प्रचुर प्रचार है।
लघुत्रयी-लघुत्रयी कहनेसे कुमारसंभव, मेघदूत और रघुवंश ये तीन कान्य लिये जाते हैं । ये तीनों काव्य कालिदासरचित हैं।
४ कुमारसंभव -- यह महाकाव्य है. इसमें १७ सर्ग हैं। इसमें राजकुमार( कार्तिकेय ) की उत्पत्तिको कथा है। इसपर कोलाचल मल्लिनाथकी टीका है। इसमें प्रथम सर्गमें पार्वतीके जन्मका वर्णन, द्वितीयमें तारकाऽसुरसे पीडित देवताओंका ब्रह्मदेव के समीप जानेका वर्णन, तृतीयमें कामदाहका वर्णन, चतुर्थ में रतिविलाप, पञ्चममें पार्वती की तपश्चर्या, षष्ठमें पार्वतीका वाग्दान, सप्तममें पार्वतीका विवाहवर्णन, अष्टममें पावतीकी रतिक्रीडाका वर्णन, नवममें कैलासगमन, दशममें कुमारकी उत्पत्ति. का वर्णन, एकादशमें कुमारकी क्रीडाका वर्णन, द्वादशमें कुगरके सेनापतित्वका वर्णन, त्रयोदशमें कुमारका सेनापतित्वमें अभिषेक, चतुर्दशमें देवसेनाका प्रयाण, पञ्चदश में देवताओं और दैत्योंकी सेनाओंका संघटन, षोडशमें देवताओं और दैत्योंका संग्रामवर्णन और सनदशमें तारकासुरके वध का वर्णन है । इस महाकाव्यमें ८ सर्गतक ही मल्लिनाथकी सञ्जीवनी टीका है। पाश्चात्त्य विद्वान् ८ सर्गतक ही कालिदासको रचना मानते हैं, शेष सर्ग किसी विद्वान्से प्रक्षिप्त मानते हैं। कालिझासने ऋतुसहारकी रचना कर इसकी रचना की है ऐसा प्रतीत होता है ।
५ मेघदूत--मेघदुर खण्डकाव्य है। इसमें दो बंश है पूर्वमेघ और उत्तरमेघ, इसमें कुवेरशापसे दातादियुक्त रामगिरि स्थित किसी यक्षने अलकापुरीमें स्थित अपनी प-नीको सन्देश देने के लिए मेघसे प्रार्थना की है।
इसमें पूर्व मेघमें ६३ और उत्तरमेघमें ५२ पद्य हैं । छोटा होते हुए भी यह जगत्प्रसिद्ध मनोहर काव्य है। इसके अनुकरणमें उद्धवदूत, मनोदून, हंससन्देश आदि कई दूत काव्योंकी रचना हुई है, यहां तक कि विदेशमें भी इसका अनुकरण हुआ है। इसमें दक्षिणावर्तनाथ, वल्लभदेव और मल्लिनाथकी सजीवनी टीका प्रति प्रसिद्ध है। मेघनके कथानकका उपजीव्यब्रह्मवैवर्तपुराणस्थ योगिनी नाम की अषाढ कृष्ण - दशी के माहात्म्य की एक कथा है, जिसे भगवान श्रीकृष्णने महाराज युधिष्ठिरको बतलाई है।
६ रघुवंश--यह महाकवि कालिदासका अत्यन्त परिष्कृत मनोहर महाकाव्य है इसमें रघुवंशके राजाओंका संक्षिप्त और सारगर्भ वर्णन है। इसमें .९ सगे हैं। जिनमें प्रथम सर्ग में रघके पिता दिलीपके वशिष्ठके आश्रममें जानेका वर्णन, द्वितीयमें दन्दिनीका दिलीपको वरप्रदानका वर्णन, तृतीयमें रखका जन्म और सुझावस्थाप्राप्त उनका राज्याभिषेक, चतुर्थमें विश्वजित् यज्ञके लिए र दिग्विजय, पञ्चममें रघुके पुत्र अजके स्वयंवरमें गमतका वर्णन है, पष्ठमें इन्दुमतीका