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( ११ ) आते हैं, परन्तु इसमें भी मनोहरता नहीं है। तीसरा वाक्य कान्तासम्मित है। जैसे कान्ता (स्त्री) अपने पतिको मनोहर पदावलीसे हितकार्यमें उपदेश देकर प्रवृत्त करती है, वह वाक्य कान्ता पम्मित है, काव्य भी कान्तासम्मित वाक्य है, वह मनोहरतासे हितका आधान करनेवाला है। . साहित्यदर्पणमें विश्वनाथ अविराज लिखते हैं----
"चतुर्वर्गफलप्राप्तिः सुखादल्पधियामपि ।
काव्यादेव" अर्थात् अलाबुद्धिवालों को भी काव्य ही सुखपूर्वक चतुर्वर्ग ( धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ) फलकी प्राप्ति होती है ।
इसी प्रकार बहुतसे विद्वानोंने लमण करनेके अवसरमें कायको निरतिशय आनन्द, यश और अर्य आदिकी प्राप्तिका कारण बताया है । अब अलङ्कारशास्त्र लक्ष्यभूत कुछ ग्रन्थों की चर्चा करते हैं ।
पद्य-काव्य १ वाल्मीकिरामायण ( आदि काव्य ) श्लोकसंख्या २४००० ( प्रायः अनुष्टुप् छन्द ) कर्ता-वाल्मीकि मनि । समय-त्रेतायुग।
२ जाम्बवती विजय वा पातालविजय काव्य, कर्ता-महावैयाकरण अष्टाध्यायीकार पाणिनि मुनि । पूर्णोक्त काव्य अभी उपलब्ध नहीं, पर बहुत ग्रन्थोंमें उसका उल्लेख है । समय-हृष्टपूर्व-३४३-३२१ । डॉ० रामकृष्ण भाण्डारकर और गोल्डष्ट्रकरके मताऽनुसार पाणिनिका समय ईसासे ७०० वर्ष पूर्व है। युधिष्ठिर मीमांसकके मतमें वि० पू० २८०० वर्ष समय है।
३ स्वर्गारोहणकाव्य, कर्ता-अष्टाध्याशीपर वातिककार कात्यायन मुनि । जैसे राजशेखरने लिखा है
"नमः पाणिनये तस्मै, यस्मादाविरभूदिह ।
आदी व्याकरणं, काव्यमनुजाम्बवती जयम् ।।" यह काव्य भी अभी उलब्ध नहीं, पर बहुत ग्रन्थों में इसकी चर्चा की गई है। महाभाष्य-४-३-११० में इसका "वाररुच काव्य"के रूप में उल्लेख है। महाराज समुद्रगुप्तके कृष्णचरित काल में इस विषयपर ऐसा प्रकाश डाला गया है
“न केरलं व्याकरणं पुपोष दाक्षीसुतस्येरितवार्तिकर्यः । काव्येऽपि भूयोऽनुचकार तं वै कात्यायनोऽसौ कविकर्मदक्षः॥" इसी प्रकार नहाभाष्यकार पतञ्जलि मुनिने भी "बलिबन्ध" और "कंसवध" आदि नाटकोंका उल्लेख किया है, "जघान कसं किल वासुदेवः' इत्यादि उदाहरण भी दिया है । परन्तु उक्त दो ग्रन्थ भी अभी उपलब्ध नहीं हैं। इसी तरह “वाररुचं काव्यम्" लिखकर भाष्यकारने संभवतः "स्वर्गारोहण" काम्पका निर्देश किया है एवम् महाभाष्यमें "वासवदत्ता" "सुमनोत्तरा" और "भैमरथी" मादि आख्यायिकाओंके भी.