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________________ क्षुद्र प्रबन्ध भेदनिरूपणम् 'जय जय सुरनरकिन्नरचारणप्रमुखमुखापण विततनिगम 'समुन्मादयसुगमगुणगण घनघनसार' विसरणनिरन्तरसुरभितदिगन्तरसदननिषीददमरवरविरचित विरतिविरहित रतिसुखसुरयुवतिविनुत महानु भाव वीर अणिमादिपरभूतिभरण प्रचण्ड मणिकुण्डलद्वन्द्वलसमानगण्ड फणिभोगसम बाहुघृतचापदण्ड 'रणितोग्रदश कण्ठतलगण्डुमण्ड "वीर प्रबलप्रथनप्रवण' प्रचुरप्रकटप्रथम क्षितिभृद्दिविषत्प्रवर क्षितिकृत्पलभू प्रथितप्रचयक्षयकृद्विशिखप्रकर धीर ॥ भेकतालम् वियच्चररिपुबलहृद्बहिरुपगतपुरीतद्ग्रथितपदपतद्वनचरदिविषन्नतिमुदित S* धीर अयमपि भेकतालभेदः । असत्वर विद्युज्जित्वरखङ्गप्रस्तुतयुद्धप्रक्रमशुम्भद्विक्रमगर्जदुर्जय रक्षःकर्तन सिद्ध्यद्वर्तन धीर ॥ इदमपि भेकतालान्तरम् । वन्यशृङ्गाटकव्यारटत्तोटकत्रासकृत्ताटकानाटकोत्पाटकार्यापहृद्वा टकालिप्तपुङ्खाशुगाटोपसद्वाटिकारन्धयागत्रसद्द्भा धिसन्तानसन्तानसङ्काश 131 घनतरमरुद्रथजयमिल निजशरइतिविदलद्रणमुखरणत् खरमुखर 1 समुदय सुगमत ' विसरणसिन्दुरसुरभित-त धीरत " मणिकुण्डलद्वन्द्वलसमानगण्ड - इति भागः 'त' प्रतौ न दृश्यते ● रमितो ... . कण्ठ–म ० धीर - त Y 8 प्रवणप्रचरप्रचलप्रकटत क्षितिकृत्प्रभुक्वथितप्रच यक्षयकृत्-त
SR No.023453
Book TitleAlankar Raghavam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYajneshwar Dikshit, T V Sathynarayana
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1997
Total Pages354
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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