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________________ (४१) पुढवाइ दसपयाणं, अंतमुहुत्तं जहन्न आनहि॥ .. दससहसवरसविश्ा, नवणादिवनिरयवंतरिया ए शब्दार्थः-पृथ्वी कायादि [पांच स्थावर, त्रण विकलेजिय, तिर्यंच अने मनुष्य] ए दशनी जघन्यथीथायुष्यनी स्थिति एक अंतर्मुहूर्त्तनी बे, नवनपति, नारकी अने व्यंतर देवता दश हजार वर्षनी जघन्य स्थातिवाला बे. ॥ श्ए वेमाणिय जोसिया, पल्लतयहंसाना हुँति॥ .. हवे त्रण गायाथी पर्याप्ति, किमाहार अने संझा ए त्रण द्वार कहे . सुरनरतिरिनिरएसु उपजती थावरे चनगं ॥३०॥ ___ शब्दार्थः--वैमानीक अने ज्योतसो देवता एक पढ्योपम अने तेनो श्राठमो जाग एम अनुक्रमे आयुष्यवाला होय. (इति स्थीति छार)देवता, मनुष्य, तिर्यंच अने नारकीने विषे व पर्याप्ती होय. तथा थावरने विषे चार पर्याप्ति होय॥३०॥ विगले पंच पजती, बद्दिसि आहार होइ सवेसिं॥ पणगाइपए नयणा, अह सन्नीतियं नणिस्सामि॥३१॥.. शब्दार्थः-विकलेंजियने विषे पांच पर्याप्ति होय. (इति पर्याप्ति छार) सर्वे जीवोने उ दिशाने विषे आहार होयबे पांच दिशा आदि पदने विषे नजना बे. (इति किमाहारहार) हवे त्रण संज्ञा नणीश.॥ चनविदसुरतिरिएसु, निरएसु य दीहकालगी समाः ॥ विगले हेनवएसा, सन्नारहिआ थिरा सवे ॥३॥ ... शब्दार्थः-चार प्रकारना देवता, तिर्यंच अने नारकोने विषे दीर्घकालिकी संज्ञा होय. विगलेंजियने. विषे हेतुपदेशि कीसंज्ञा होय अने सर्वे थावरो संज्ञा रहित होय ॥ ३२
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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