________________
(४०) शब्दार्थः-एक समयने विषे गर्नजतिर्यंच, विकलेंडि, ' नारको थने देवता संख्याता अथवा असंख्याता नत्पन्न थाय . नियमथी मनुष्यो संख्याता उत्पन्न थाय बे. वनस्पतिकाय अनंता उत्पन्न थाय डे अने थावर असंख्याता नत्पन्न थाय डे ॥२५॥ असन्नीनर असंखा, जद उववान तहेव चवणेवि॥
हवे चार गाथाथी स्थितिद्वार कहे . बावीससगतिदसवास-सदस्स उक्कि पुढवाइ ॥२६॥
शब्दार्थः-असंही मनुष्यो असंख्याता नत्पन्न थाय जे. जे. वीरीते उत्पन्न यवानी वात कही तेवीज रीते चवन पण जाणवू. (इति उत्पत्ति चवनहार) पृथ्वोकाय, अप्काय, वान काय अने वनस्पतिकायतुं आयुष्य अनुक्रमे बावीस हजार, सात हजार, त्रण हजार श्रने दस हजार वर्षनुं उत्कृष्टुं होय . ॥६॥ तिदिगि तिपल्लान, नरतिरि सुरनिरय सागरतित्तीसा॥ वंतर पल्लं जोश्स, वरिसलकाहियं पलियं ॥२॥ ___ शब्दार्थः-त्रण दिवस, अग्निकाय, श्रायुष्य होय . मनुष्य अने तिर्यंच त्रण पस्योपम श्रायुष्यवाला होय . देवता श्रने नारको तेत्रीस सागरोपमनां आयुष्यवाला होय जे. व्यंतर देवता एक पक्ष्योपमनां आयुष्यवाला अने ज्योतसो देवता एक लाख वर्ष अधिक एवा एक पक्ष्योपमना श्रायुष्यवाला होय. असुराण अदियअयरं, देसूणउपल्लयं नवनिकाए ॥ बारसवासूणुपण दिण--उमास नकि विगलाक ॥श्न॥
शब्दार्थः-असुर कुमारोनुं एक सागरोपमथी कांइक श्र. धिक श्रायुष्य होय. नव निकाय- देसे उण बे पढ्योपमनु, वि. कलेंजिय [बेइंडि, तेरिडियने चौरिजिनुं] अनुक्रमे बारवर्ष, उंगगपञ्चास दिवस अने मासर्नु ए सर्व नत्कृष्ट आयुष्य जाणवू.श्व