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________________ (३५) शब्दार्थः-देवता अने नारकीने विषे श्रगीयार,तिर्यंचने विषे तेर, मनुष्यने विषे पंदर, विकलेंजियने विषे चार, वानकायने विषे पांच अने स्थावरने विषेत्रण योग होय ॥२१॥ (इति योगहार) . हवे एक गाथाथी योगनां नाम कहे बे. सच्चेअरमीसअसच्च--मोस मणवयवेनविदारे ॥ जरलंमिसा कम्मण, श्य जोगा देसिया समए ॥३॥ ___ शब्दार्थः-सत्य मनोयोग, असत्य मनोयोग, सत्याभूषा मनोयोग, असत्यामृषा मनोयोग. ए प्रमाणे मन अने वचनना योग जाणवा. वैक्रिय योग, आहारक योग तेमज औदारिक योग: एत्रण मिश्र सहित.अने वली कार्मण योग, ते साते कायाना योग थागमने विषे कह्या बे, ॥ ॥ (इति योगहार ) , हवे बे गाथाथी उपयोग द्वार कहे जे. तिअन्नाण नाणपण, चउदसण बार जिअलकणुवउँगा। इस बारस नवनगा, नणि तिलुकदंसीहिं ॥३॥ ___ शब्दार्थः-त्रण अशान, पांच ज्ञान, चार दर्शन, ए बार जीवना लक्षणरूप उपयोग . ए बार उपयोग त्रीलोक दर्शी एवा श्री जिनेश्वरोए कह्या बे ॥२३॥ उवगंगा मणुएसु, बारस नव निरय तिरय देवेसु ॥ विगलागे पण बकं, चउरिंदिसु थावरे तिअगं ॥॥ शब्दार्थ-मनुष्यने विषे बार, नारकी तिर्वच अने देवताने विषे नव, बेइंडिय अने तेरिडिने विष पांच, चौरिजिने विषे उ थने थावरने विषेत्रण उपयोग होय ॥२॥ (इति उपयोगहार) * हवे दोढ गाथाथी उत्पत्ति अने चवनद्वार कहे बे. संखमसंखा समए, गनयतिरिविगलनारय सुरा य ॥ मणुआ नियमा संखा, वणणंता थावर असंखा॥श्या A
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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