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(३७) ए चार विना बाकीना त्रण समुद्घात विकलेंजिने जाणवा अने संझोने ते सात समुद्घात निश्चे होय . ॥ १७ ॥
हवे बे गाथाथो दृष्टि अने दर्शनद्वार कहे .. पण गप्ततिरिसुरेसु, नारयवासु चनर तिय सेसे ॥ विगलदिछी थावर-मिबत्ति सेस तियदिह ॥१॥
शब्दार्थः-गर्जज तियच अने देवताने विषे पांच, नारकी अने वानकायने विषे चार अने बाकीनाने विषेत्रण समुद्घात होय. (इति समुद्घातबार) विकलेंडिबे दृष्टिवाला .थावर मिथ्यात्वी जे अने बाकीना त्रण दृष्टिवाला ॥१॥ (इति दृष्टिहार) थावरबितिसु अचरकु, चरिंदिसु तदुगं सुए जणिय॥ मणा चनदंसणिणो, सेसेसु तिगं तिगंजणियारणा
शब्दार्थः-स्थावर, बेइंडिय अने तेरिंजियने विषे एक अचक्नु दर्शन होय. चौरिजिने विषे चकुदर्शन श्रने अचकु. दर्शन सूत्रमा कडं डे. मनुष्यो चार दर्शनवाला होयडे अने बा- . कीनाने विषेत्रण त्रण दर्शन होय. ॥१॥ (इति दर्शनधार)
हवे एक गाथायी ज्ञान तथा अझानद्वार कहे . .. अन्नाणनाणतियतिय,सुरतिरिनिरये थिरे अन्नाणगं नाणानाण विगले, मणुए पणनाणतिअन्नाण ॥२०॥
शब्दार्थः-देवता, तिर्यंच अने नारकीने विषेत्रण अज्ञान अने त्रण ज्ञान होय . थावरमां बे अज्ञान होय. विकलेंजिय ने विषे वे ज्ञान अने वे अज्ञान होय. मनुष्यने विषे पांच ज्ञान अने त्रण थकान होय. ॥२०॥ (इति शानद्वार ) .
हवे एक गाथाथो योगद्वार कहे . श्कारस सुरनिरये, तिरिएसु तेर पन्नर मणुएसु ॥ विगले चन पण वाए, जोगतिगं थावरे हो ॥