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________________ ( १४८५ ) जे धम्मिया ते खलु सेवियवा, जे पंकिया ते खलु पुच्चियवा जे साहुणो ते अनिवंदियवा, जे निम्ममा ते परिखानियवा शब्दार्थ:-- जे धर्मी माणसो बे ते सेववा योग्य बे, जे पंकि त पुरुषो बे ते पूजवा योग्य बे, जे साधु बे ते वांदवा योग्य बे धने जे ममतारहित बे ते पमिलानवा योग्य बे. ॥ १४ ॥ पुत्ताय सीसाय समं विजत्ता, रिसीय देवाय समं विजत्ता॥ मुखा तिरिका यसमं विजत्ता, मुख दरिहाय समविजत्ता शब्दार्थ:--पुत्र ने शिष्यो सरखा जालवा, मुनि ने देव ता सरखा जाणवा, मूर्ख घने तिर्यंच सरखा जाएणवा ने मूवेला तथा दरिद्री सरखा जाणवा ॥ १५ ॥ सवाकला धम्मकला जिलाइ सबाकहाधम्म कदा जिणा || सबंबलं धम्मबलं जिणाइ, सवं सुदं धम्मसुहं जिलाइ १६. शब्दार्थ:-- सर्व कलाने धर्मकला जीते, सर्व कथाने धर्मकथा जीते, सर्व बलने धर्मबल जीते ने सर्व सुखने धर्म सुख जीते. जूए पसत्तस्य धस्स नासो, मंसं पसत्तस्य दयाइनासो ॥ मर्जां पसत्तस्य जसस्सनासो, वेसापसतस्य कुलस्स नासो शब्दार्थ:-- जुवटामां श्रासक्त थयेलाना घननो नाश थायडे, मांसमां श्रासक्त थयेलानी दयादिनो नाश थाय बे मद्यमांसक्त थयेलाना जसनो नाश थाय बे ने वेश्यामां श्रासक्त थयेलाना कुलनो नाश थाय वे ॥ १७ ॥ हिंसापसत्तस्य, सुधम्मनासो, चोरीपसत्तस्य सरीरनासो॥ तापरत्रिसुपसत्तयस्स, सबरसनासो ग्रहमा गई य १८ शब्दार्थः- हिंसामां आसक्त थपेलाने सारा धर्मनो नाश थाय ब्रे, चोरीमां यासक्त थयेलाना शरीरनो नाश थाय बे.
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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