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(१७) नाणं सुकाणं चरणस्स सोदा,सिसस्ससोहा विणए पविति
शब्दार्थः--नग्र तपवालानी क्षमा शोनाडे, उपशमवालानी समाधिजोग शोजा , चारित्रनी ज्ञान अने नत्तम ध्यान ए बे शोन्ना अने शिष्यनी विनयमां प्रवृत्ति ए शोजा जे. ए॥ अनुसणोसोहबंजयारी, अकिंचणो सोदश दिकधारी बुझिजुङ सोदरायमंती, लजाजुन सोदइ एगपत्ति १०
शब्दार्थः-श्रान्नूषण विना ब्रह्मचारी शोच्ने बे, परिग्रह र. हित दीदाधारी शोजे जे; बुद्धिवंत राजमंत्री शोने ने भने खजावंत पुरुष एक स्त्रीथी शोने ॥१०॥ अप्पाअरीहोत्रणवज्यिस्य,अप्पाजसोसीलमननरस्स अप्पाउरप्पाअणवध्यिस्य, अप्पाज अप्पासरणंगईय॥
शब्दार्थः-अशांत माणसने पोतानो श्रात्मा वैरी डे शोल. वंत माणसनो श्रात्मा जस पामे , अशांत माणसनो आत्मा पुरा. स्मा ने अने श्रात्माज श्रात्माने शरण करवा योग्य अने गतिरूपले. न धम्मकजं परमनिक, नपाणिहिंसा परमं अकजं॥ नपेमरागा परमनिबंधो, न बोहिलानापरमबि लालोर
शब्दार्थः-धर्म कार्य विना बीजं उत्तम कार्य नथी,प्राणी हिंसा विना बीजुं अकार्य नथी, प्रेमराग विना बीजो बंध नथी अने बोधिलान विना बीजो लान्न नथी. ॥ १५ ॥ नसेवियवा पमया परका, न सेवियवा पुरिसा अविद्या॥ नसेवियवाअहिमानिहिणा, नसेवियवापिसुणामणुस्सा।।
शब्दार्थः-पारकी स्त्री सेववी नहि, मूर्ख पुरुषोने सेववा न हि, अनिमानी हिन माणसोने सेववा नहि अने चामिया माएसोने पण सेववा नहि. ॥ १३॥............