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( १५० ) मज परस्त्री मां आसक्त थयेला धन शरीरादि सर्वनो नाश ने म गति थाय बे ॥ १८ ॥ दादरिद्दस्सस्स खंती, इच्छा निरोदोइ सुहोइ यस्स॥ तारुणए इंद्रियनिग्गदो य, चत्तारि एयाणि सुक्कराणि १९
शब्दार्थः दरिद्रीने दान खापवु, श्रीमंतना क्षमा राखवी, Sara रोकी अने युवास्थामां इंद्रियोने वश्य राखवो. ए चार बहु पुष्कर बे. ॥ १९ ॥
सासयं जीवियमाहु लोए, धम्मं चरे साहु जिणोवइ ं धम्मीयताणं सरणं गई य, धम्मं निसेवितुं सुदं बहंति ॥
शब्दार्थः- लोकमां जीवीत अशाश्वतुं कथं बे माटे जिनेश्वरे कला उत्तम धर्मनुं श्राचरण करो. धर्म रक्षण कर्ता, शरण करवा योग्य ने सारी गति आपनारो बे. ए धर्मने सेवीने सावतुं सुख पमाय बे ॥ २० ॥
॥ इति श्री गौतम कुलक ॥
॥ अथ दान कुलकम् ॥ परिहरिय रजसारो, नृप्पमिय संजमिक्क गुरुनारो ॥ खंधान देवसं, विपरंतो जयन वोरजिणो ॥ १ ॥
शब्दार्थः- राज्यना सारने त्यो देनारा, चारित्ररूप एक बहु जारने नृपामनारा बने खजा उपरथी देवदृष्य वस्त्र विप्रनेपी देनारा श्री महावीर प्रभु जयवंता वत्तों. ॥ १ ॥ धम्म कामया, तिविहं दाणं जयंमि विकायं ॥ तहवि य जिणंदमुणियो धम्मियदा पसंसंति ॥२॥
शब्दार्थः धर्मदान अर्थदान अने कामदान एवा नेदथ