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________________ ९४ ते आ प्रमाणे - पहेला अने बीजा देवलोके पृथ्वीपिंड (२७००) याजन तथा विमान (५००) योजन ॥ त्रीजां अने चोथा देवलोके पृथ्वीपिंड [ २६०० ] योजन तथा विमान ( ६०० ) योजन || पांचमा अने छट्टा देवलोके पृथ्वीपिंड (२५००) योजन तथा विमान [ ७०० ] योजन || सातमा अने आठमा देवलोके पृथ्वीपिंड ( २४०० ) योजन तथा विमान (८०० ) याजन | नवमे दशमे अगियारमे अने बारमे देवलोके पृथ्वीपिंड ( २३०० ) योजन तथा विमान (९०० ) योजन || नव ग्रैवेयके पृथ्वीपिंड (२२००) योजन तथा विमान (१००० ) योजन || पांच अनुत्तर विमाने पृथ्वीपिंड ( २१०० ) योजन तथा विमान (११००) योजन ॥ नेने भेगा करीये त्यारे (३२०० ) योजन थाय ॥ सौधर्मादिक विमानाना वर्ण कहे छे. पण चउति दु वण्णविमाणा, सधय दुसु दुसु य जी सहस्सारो ॥ Jan उवरि सिय भवणवंतर - जोइसियाणं विविहवण्णा ॥ १५८॥ 23 अर्थ - पहेला देवलोकयी ( जा सहस्सारो ) के० आठमा सहबार देवलोक सुधीना ( दुसु दुसु य ) के० बबे बबे देवलोकना ( पण चउतिदुवण्ण विमाणा ) के० अनुक्रमे पांच चार ऋण अने वर्णना विमाना होय छे. तथा ( समय ) के० धजा सहित होय छे. ते आ प्रमाणे- पहेला तथा बीजा देवलोकना विमाना काला नीला राता पिला अने धोला होय छे, त्रीजा तथा चोथा देवलोकना विमाना नीला राता पिला अने धोला मोय छे. पांचमा तथा छठ्ठा देवलोके राता पीला अने धोला होय छे. सातमा तथा आमा देवलोके पीला अने घोला होय छे, उवरि के० तेना उपरना
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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