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हवे जेबी रीते अनुक्रमे करीने चोत्रीश द्वार कया, तेवोज रीते अनुक्रमे करीने देवतानी स्थिति प्रमुख नव द्वार कहे छे, तेमां प्रथम १ भुवनपति, २ व्यंतर, ३ ज्योतिषी अने ४ वैमानिक. ए चार प्रकारना देवोमांथी भुवनपति देवोनीजवन्य आयुष्यनी स्थिति अर्द्धगाथाए करीने कहे छे
दस वाससहस्साई, भवणवईणं जहन्नठिई ॥२॥' - अर्थ-(भवणवईणं)के० असुरकुमारादिक दश प्रकारना भुवनाति देवोनी अने भुवनातिनी देवीओनी सामान्यपणे (दस वाससहस्साई) के० दश हजार वर्षनी (जहन्नठिई) के० जघन्यथी आयुष्यनी स्थिति होय, पण तेथी ओछी न होय. ___ अहिं देवताओना आयुष्यनुं प्रमाण पलोरम तया सागरोपमथी कहेशे, माटे पल्योपम तथा सागरोपमनुं स्वरूप देखाडे छे.
देवकुरु तथा उत्तरकुरुना उमजेला सात दिवसना घेटाना एक उत्सेवांगुल प्रमाण रोमखण्डना सात वार आठ आठ खण्ड करतां ते सर्व मलीने वीस लाख सत्ताणुं हजार एक सो बावन खंड थाय. तेवा खंडथी चार गाउनो घनवृत्त (चार गाउ विष्कंभ अने चार गाउ उंडाईवाळो) कूवो ठांसीने कांठा सुधी भरी तेमांथी समये समये एक एक रोमखंड काढतां ज्यारे कूवो खाली थाय त्यारे एक उद्धार पल्योपम कहेवाय, अने सो सो वर्षे एक एक रोमखण्ड काढतां अद्धा पल्योपम कहेवाय छे. तेवा दश कोडाकोडी पल्योपमे एक सागरोपम थाय छे. अहिं छ प्रकारना पल्योपमर्नु विशेष स्वरूप क्षेत्रसमासादि ग्रन्थोथी जाणी लेवु ॥ ____हवे भुवनपति देवोनी उत्कृष्टी आयुष्यस्थिति बे गाथाए करी कहे छे.