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चमरबलि सारमहियं, तद्देवीणं तु तिन्नि चत्तारी ॥ पलियाई सढाई, सेसाणं नव निकायागं ॥ ३ ॥ दाहिण दिवढ्ढ पलियं, उत्तरओ हुँति दुन्नि देसूणा॥ तदेवीमद्धपलियं, देसृणं आउमुक्कोसं ॥४॥
अर्थ-भुवनपति देवोना दश निकाय (जाति विशेष अथवा निवास स्थान ) छे. ते दरेक निकायमा दक्षिण अने उत्तर एम बबे खण्ड छे. दरेक खण्डनो एक एक इन्द्र छे तेथी भुवनपति देवोना सर्व मलीने वीश इंद्रो छे. तेमां पहेला निकायने विषे दक्षिण दिशाना खण्डमां रहेनारा असुरकुमारोनो राजा (चमर) के० चमरेंद्र छे, तेनुंउत्कृष्ट आयुष्य (सारं) के० एक सागरोपमर्नु छे. तथा उत्तर दिशाना खण्डमां रहेनारा असुरकुमारोनो राजा (बलि ) के० बलीन्द्र छे. तेनुं उत्कृष्ट आयुष्य ( अहियं) के० एक सागरोपमथी कांइक अधिक छे. (तु) के० वली (तद्देवीणं) के० ते चमरेन्द्रनी देवी, उत्कृष्ट आयुष्य ( सट्टाई तिनि पलियाई) के० साडात्रण पल्योपमनुं छे. तथा बलीन्द्रनी देवी, उत्कृष्ट आयुष्य (सहाई चत्तारि पलियाई) के० साडाचार पल्योपमनुं छे. तथा (सेसाणं नव निकायाणं) के० ए चमरेन्द्र तथा बलीन्द्र विना बाकीना जे नव निकायना इंद्रो छे. ॥३॥ तेमां (दाहिण) के० दक्षिण दिशाना नव निकायना धरणेंद्र प्रमुख नव इन्द्रो छे तेमनुं उत्कृष्ट आयुष्य (दिवट्ठ पलियं) के० दोढ पल्योपमनुं जाणवू, अने (उत्तरओ) के० उत्तर दिशाना नव निकायना भूतानेंद्र प्रमुख नव इंद्रो छे तेमनुं उत्कृष्ट आयुष्य (दुनि देसूणा) के० देशे जणु बे पल्योपमर्नु एटले बे पल्योपममां कांइक ओछु जाणवु. तथा (तद्देवीमद्ध ) के० ते धरणेन्द्र प्रमुख