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________________ ७८ एगं देवे दीवे, दुवे य नागोदहीसु बोधव्वे ॥ चत्तारि जक्खदीवे, भूयसमुद्देसु अठेव ॥ १२६ ॥ 40 सोलस सयंभुरमणे, दीवेसु पइठिया य सुरभवगा ॥ इगतीसं च विमाणा, सयंभुरमणे समुद्दे य ॥ १२७ ।।। __ अर्थ-हेला प्रतरनी चारे दिशानुं (एगं ) के० पहेलं एक एक विमान ( देवे दीवे ) के० देवद्वीपमां छे, (य) के० अने (दु.) के बे बे विमान ( नागोदहोसु ) के० नागसमुदमा (वायव्ये) के० जाणवां. त्यार पछानां (चत्तारि)ो चार चार विमान (जनवदी) के० या द्रोपमा छे. अने (भूपसमुदे तु ) के भुतसमुहमा( अठेव ) के० आठ आउ विमानो छे. ॥ १२६ ॥ वली (सयंभुरमगे दीवेसु) के० सयंभूरमग द्वीपने वि। ( सोलस ) के० शोल ( सुरभाणा ) के० विमानो ( पइडिया ) के रह्यां छे (च) के० अने ( इससे विनागा) के एकवी विमानो ( सयंभुरमगे समुद) के • स्वयेभूरमण समुद्रमा छे. ॥ १२७ ॥ ___हवे बीजा प्रतरमा चारे दिशाये एकसठ विमानोनो पंक्ति शी रीते छे, ते कहे छे. वटुं वट्टस्सुवरिं, तंसं तंसस्त उपरि होइ । चउरंसे चउरंस, उद्वं तु विभागसेडीए ॥ १२८॥ अर्थ:-(वस्सुवरिं) के० वाटला एटले गोलपिमाननी उपर (वर्ट) के० गोल विमान छे. ( तंसस्स ) अरिमं) के० त्रण खुणानी उपर ( तंसं ) के० त्रिखूणी विमान (होइ ) के० होय छे. (तु) के० वली (चउरसे ) के० चार खूणा विमाननी उपर
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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