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________________ शने त्रण गुणा करता एक सो छवीश थाय, तेमां धातकी वंदना बार, लवण समुद्रना चार, अने जंबुद्वोपना बे. एअढार मेलवतां एकसो चुमालीश थाय, परंतु पुष्करबरद्वीपमां अर्धं मनुष्य क्षेत्र छे माटे (पुक्खरद्धंमि) के० अर्या पुष्करवर द्वीपमां (विसत्तरो) के० बहोतेर बहोतेर चंद्र मूर्य छे, बाकीना बहोतेइ चंद्र सुर्य समश्रेणीर. नथी अने स्थीर छ माटे गण्या नथी. वली पुषफरवर द्वीपना एक सो चुमालीशने त्रण गुणा करतां चार सो बत्रीश थाय, तेमां जंबुद्वीपना बे, लवण समुद्रना चार, धातकी खंडना वार, अने. कालोदधीना बेतालीश मेलवतां पुष्करवर समुद्रं चारसो बाणु चंद्र अने चारसो वाणु सूर्य थाय छे. एज प्रमाणे आगलना दी। समुद्रने विधे पण 'जाणवू. ॥ ९८ ॥ ___हवे मनुष्य लोकमां पंक्तिने विवे चंद्र सुर्यनी संख्या कहे छे. दो ससि दो रवि पंती, एगंतरिया छसहि संखाया ।। मेरु पयाहिगंता, माणुसखित्ते परिभमंति ॥ ९९ ॥ ___अर्थ-जंबुद्वीपमा ( दो ससि) के० बे चंद्र अने (दो वि) के० बे सूर्य तेमनी (पंती ) के० पंक्ति एटले श्रेणि छे. ते पंक्ति (एगंतरिया ) के० एक एकने आंतरे छे. एटले सूर्यनी पंक्तिने आंतरे चंद्रपंक्ति अने चंद्रपंक्तिने आंतरे सूयपंक्ति छे. अही द्वी:रूप मनुष्य क्षेत्रमा एक पंक्तिने विवे छसठिसंखाया के० छासठ छासठ चंद्र सूर्य होय छे. तेवी ते चार पंक्ति छे. ते चारे पक्तिओ (माणुसखित्ते ) के० मनुष्य क्षेत्रने विवे ( मेरु पयाहिणंता ) के० १ ए संबंधमां मतांतर घणो छे, ते मोटा ग्रंथाथो जागवो आ चालु प्रकरणनीज १०६-१०७ ने १०८ मी गाथा देखवाथी आ करणनो मतांतर समजाय छे, तेोपण व्यामोह करवा योग्य नथी.
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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