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________________ के० महाभीमेन्द्र. ॥ ३९ ॥ किंनर निकायमां दक्षिण दिशाए ( किंनर ) के० किंनरेन्द्र अने उत्तर दिशाए (किंपुरिसे ) के० किंपुरुषेन्द्र, तथा किंपुरिव निकायमां दक्षिण दिशाए ( सप्पुरिसा) के० सत्पुरुषेन्द्र अने उत्तर दिशाए ( महपुरिस ) के० महापुरुषेन्द्र, ( तहय ) के० तेमज महोरग निकायमां दक्षिण दिशाने विषे ( अइकाए ) के० अतिकायेन्द्र अने उत्तर दिशाने विषे (महकाए) के० महाकायेन्द्र, गंधर्व निकायमा दक्षिण दिशाने विषे (गीयरई ) के० गीतरतींद्र अने उत्तर दिशाने विष (गीयजसे ) के० गीतयशेंद्र. ए प्रमाणे आठ निकायमां (कमा ) के० अनुक्रमे करीने ( दुन्नि दुनि) के० बबे इंद्रो होय छे. ॥ ४० ॥ ___ हवे ए पिशाचादिक आठ निकायना व्यंतर देवोनी ध्वजामां चिन्ह होय ते कहे छे:चिंधं कलंब सुलसे, वड खटुंगे असोग चंपयए। नागे तुंबरु अझए, खट्रंगविवज्जिया रुक्खा ॥४१॥ ६१ __ अर्थ:-पिशाचन (कलंब ) के० कदंब वृक्षनु चिन्ह, भूतने ( सुलसे) के० सुलस वृक्षतुं चिन्ह, यक्षने ( वड ) के० वडवृक्षy चिन्ह राक्षसने (खटुंगे.) के० तापसना पात्रनुं चिन्ह, किंनरने ( असोग ) के० अशोक वृक्षy चिन्ह, किंपुरुषने (चंपयए) के चंपक वृक्षतुं चिन्ह, महोरगने (नागे) के० नाग वृक्षy चिन्ह, गंधर्वने (तुंबरु अ ) के० वळी तुंबराना वृक्षनु चिन्ह होय छे. ए सर्वे (चिंध) के० चिन्ह ( झए) के० ध्वजामां होय छे. तेमां (खटुंगविवज्जिया) के० खदांगने वर्जीने बाकीना सर्वे चिन्हो रुक्खा के० वृक्षो छे. अने खटवांग ए तापसर्नु उपकरण है. ॥४१॥ हवे ए व्यंतर देवोना शरीरनो वर्ण कहे छ:
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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