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दिशानो (देणुदाली ) के. वेणुदालिन्द्र. ( तत्तो) के० मारपछी चोथी विद्युत्कुमार निकायनी दक्षिण दिशाने पे वि( हरिकते ) के० हरिकंतेन्द्र अने उत्तर दिशाने विषे ( हरिस्सह ) के० हरिसहेन्द्र (चेव ) के० निश्चयथी जाणवा. ॥ २३ ॥ पांचमी अग्नि कुमार निकायनी दक्षिण दिशाने विषे ( अग्गिसिह ) के० अग्निशिखेन्द्र अने उत्तर दिशाने विषे ( अग्गिमाणव ) के० अग्निमानवेंद्र. छठी द्वीपकुमार निकायनी दक्षिण दिशाने विषे (पुग्न ) के० पूर्णेन्द्र अने उत्तर दिशाने विष (विसिट्टे ) के० विशिष्टेन्द्र. ( तहेव ) के० तेमज सातमी उदधिकुमार निकायनी दक्षिण दिशाने विषे (जलकंते ) के० जलकंतेन्द्र अने उत्तर दिशाने विषे ( जलपह) के० जलप्रमेन्द्र ( तह) के० तेमज आठमी दिशिकुमार निकायनी दक्षिण दिशाने विषे ( अमिअगई ) के० अमितगतीन्द्र अने उत्तर दिशाने विषे ( अमियवाहण ) के० अमितवाहनेन्द्र-॥२४॥ (य) के. वली नवमी वायुकुमार निकायनी दक्षिण दिशाने विषे ( लंबे ) के० लंबेन्द्र अने उत्तर दिशाने विषे (पभजण) के० प्रभंजनेन्द्र. दशमी स्तनितकुमार निकायनी दक्षिण दिशाने विषे ( घोस ) के० घोपेंद्र अने उत्तर दिशाने विषे ( महाघोस ) के० महाघोषेन्द्र. ( एसिं ) के० ए वीश इंद्रमांथी ( अन्नयरो) के० कोइ इंद्र जो पोतानी शक्ति फोरवे तो ते (जंबुद्दीव) के० जंबुद्वीपने (छत्तं ) के० छत्राकार करवाने तथा ( मेरुं ) के० मेरुपवतने ( दंडं काउं) के० दंड करवाने ( पहु) के० समर्थ थाय छे. अर्थात् ते इन्द्र पृथ्वीनुं छत्र करी अने मेरुपर्वतनो दंड करी डाबा हाथे धारण करे तो पण तेना शरीरने कांई प्रयास जणाय नहीं. छतां कोइ वखत एवी शक्ति फोरवी जंबुद्धीपने छत्राकार कर्यु नथी, करता नथी ने करशे पण नहिं.