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२३५ सहाय सुद्ध वालुय, मणोसिला सकरा य खरपुढवी॥ इम बार चउद सोलस,ट्ठारस बावीस सम सहस्सा।।४२०॥3ar
अर्थ-( सहाय ) के० मारबाड देशनी सुकुमोल माटीनी ( इग) के एक हजार वर्षनी, ( सुद्ध) के० गोपीचंदनादिक सुकुमोल माटीनी (चार) के० वार हजार वर्षनी, (वालुय ) के० नदी प्रमुख वेलुनी (चउद) के० चउद हजार वर्षनी, (मणोसिला) के० मनसीलनी ( सोलस) के सोल हजार वर्षनी, ( सकराय ) के० शर्करा हरताल सुरमादिकनी ( अहारस.) के० अढार हजार वर्षनी, अने (खरपुढवी ) के० शीला . पाषाण तथा रत्न विगेरेनी ( बावीस समसहम्सा) के वावीश हजार वर्षनी उत्कृष्ट स्थिति जाणवी. ॥ ४२० ॥
हवे पंचेंद्रितिर्यचना जूदा जूदा भेदनी स्थिति कहे छे. गम्भ भुय जलयरोभय,गम्भोरग पुवकोडि उक्कोसा॥ गम्भचउप्पय पक्खिसु,तिपलिय पलिया असंखंसो।।४२१॥311 ___ अर्थ-(गम्भ ) के० गर्भज एवा ( भुय ) के० भुजपरिसर्प नोलीया विगेरे तथा ( जलयरोभय ) के० गर्भज अने समूर्छिम एवा जलचर, वली ( गम्भोरग ) के० गर्भज उरपरिसरा. ए सर्वेनी (उकोसा ) के० उत्कृष्ट आयुष्य स्थिति (पुवकोडि ) के० एक पूर्व कोडी वर्षनी जाणवी. तथा ( गम्भ चउप्पय ) के गर्भजचतुष्पद ते गाय भैस विगेरेनी (तिपलिय) के० त्रण पल्योपमनी, अने (पक्खिसु ) के० मोर सारस विगैरे पक्षिनी (पलिया असं खंसो ) के० पल्योपमना असंख्यातमा भागनी आयुष्य स्थिति जाणवी. ॥ ४२१ ॥