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________________ आठ गुगो ( सिद्धाणं ) के० सिद्धना (हुंति) के होय छे.॥४१॥ ए मनुष्यद्वार पूर्ण थयु. .. . हवे तिथचना भुवन विना आठ द्वार कहे छे.अहिं एकेंद्री बें इंद्री ते इंद्री अने चउरेंद्री अने पंचेंद्री ए पांच प्रकारना तिर्यंच जाणवा. तेमो पृथ्वीकाय अकाय तेउकाय वाउकाय अने वनस्पतिकाय ए पांच एकेंद्री जाणवा. सर्वे मली नव भेद थाय. तेमां पण पंचेंद्रीना समुछिम अने गर्भज मली अगीयार भेद थाय. परंतु अहिं सामान्यथी तिर्यचना नव भेदनुं स्थिति द्वार कहे छे. बावीस सग ति दस वास, सहस्स गणितिदिण बेदियाइसु ।। वारस वासुणु पणदिण,छम्मास तिपलिय ठिइ जिट्ठा।४१९।। अर्थ-पृथ्वीकायनी ( बावीस ) के० बावीश हजार वर्षनी, अफायनी ( सग ) के० सात हजार वर्षनी, वाउकायनी (ति) के० त्रण हजार वर्षनी, वनस्पतिकायनी (दस वासस हम्स) केन्दश हजार वर्षनी, ( अगणि) के० तेउकायनी ( तिदिण ) के० त्रण दिवसनी, (बेंदियाईसु) के० बे इंद्रिय विगेरेनी एटले बे इंद्रियनी ( बारस वास ) के० बार वर्षनी, तेइंद्रियनी ( उणुपणदिण ) के० ओगण पचास दिवसनी, चउरिद्रियनी (छम्मास ) के० छमासनी, अने पंचेंद्रियनी (तिपलिय) के० त्रण पल्योपमनी. ए (ठिइ जिहा) के० उत्कृष्ट स्थिति एटले आयुष्य जाणवू. ए सामान्यथी तिर्यचनी स्थिति कही. ॥ ४१९ ॥ हवे अहिं पृथ्वीकायना भेद अने आयुष्य कहे छे...
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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