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________________ २०९ (पण धणुसय) के० पांच सो धनुष्यनु उत्कृष्ट शरीर प्रमाण होय.॥ जेमकेएरत्नप्रभामा सात धनुष्य त्रणहाय छ आंगुल, शर्करप्रभामां पन्नर धनुष्य वे हाथ बार अंगुल, वालुका प्रभामां एकत्रीश धनुष्य एक हाथ. पंकमभामां बासठ धनुष्य बे हाथ, धूमपभामां एक सो पच्चीश धनुष्य, तमप्रभामा अढी सेो धनुष्य, अने तमतमप्रभामां पांच सो धनुष्यनु उत्कृष्ट शरीर प्रमाण होय. ॥ ३६८ ॥ ___ हवे रत्नप्रभाना प्रतरे प्रतरे जूतुं जूदुं देहमान कहे छे. रयणाएपढमपय रे, हत्थतियं देहमागमगुपयरं ॥ छप्पण्णंगुलसवा, वुट्ठी जा तेरसे पयरे ॥ ३६९ ॥२५१____ अर्थ-( रयणाएपढमपयरे ) के रत्नप्रभा पृथ्वीना पहेला प्रतरे ( हत्थतिय देहमाणं) के० त्रण हाथर्नु उत्कृष्ट शरीर प्रमाण छे. त्यार पछी ( अणुपयर ) के० प्रतरे प्रतरे (छप्पण्णंगुलसहा ) के० साडा छप्पन्न अंगुलनी (वुड्डी) के० वृद्धि करवी के-जेथी ( जा तेरसे पयरे ) के० तेरमा प्रतरे पोणा आठ धनुष्य अने छ अंगुलनु प्रमाण पूर्ण थाय. ॥ ३६९ ॥ . हवे शर्करादिकना पतरे प्रतरे उत्कृष्टुं देहमान कहे छे. (ins जं देहपमाणं उवरि-माए पुढवीए अंतिमे पयरे ॥ तं चिय हिछिमपुढवी-पढम पयरंमि बोधव्वं ॥ ३७०॥ .. अर्थ-(उपरिमाए पुढवीए ) के० उपर उपरनी पृथ्वीना ( अंतिमे पयरे ) के० छेल्ला प्रतरने विषे उत्कृष्टुं (जं देहपमाणं) के० जे शरीर प्रमाण होय (ते) के० ते प्रमाण (चिय) के० निश्चे (हिडिमपुढवीपढमपयरंमि) के० नीचेनी पृथ्वीना पहेला प्रतरे (बोधव्यं) के० जागQ ॥ ३७० ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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