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.. १७२ (तिरियमणुसुए ) के० तिर्थच अने मनुष्यने विषे (ओही) के० अवविज्ञान (नाणाविह संटिओ) के० नानाप्रकारना संस्थानवालं ( भणिओ ) के० कथु छे. ॥ ३०२ ॥ ___ हवे उपर कहेला संस्थानोनुं स्वरूप कहे छे. तप्पेण समागारो, तप्पागारो, स चाइयंतमसो॥ उद्घाययओ पल्लो, उवरि रुदोहसंखित्तो ॥ ३०३ ॥२२॥ ____ अर्थ-(तप्पेण समागारो ) के० वहाणने आकारे जे अवविज्ञान ते (तप्पागारो) के० तापाकार अवधिज्ञान कहेवाय. (स) के० ते अवधिज्ञान (चाइयंतमसो) के० नारकीनु छे० (उद्धाययओ) के० उर्च लंबाइवाळो ( उवरि रुदो ) के० उपर विस्तार वालो अने अहसंखित्तो के० नीचे सांकडो एवो (पल्लो ) के० पल्य होय छे. ॥ ३०३ ॥ सवायओ समोविय, पडहो हिट्ठोवरि पइवासो ॥ चम्मावणद्ध विच्छन्न, वलयरूवा उ झल्लरिया ॥३०॥
अर्थ-(सबायो समाविय ) के० सर्व बाजुएथी सरखो छतां पण (हिट्ठोवरि पइवासो ) के० नोचे अने उपर थालीने आकारे पाघरो, वली (चम्मावणद्ध ) के० चामडाथी ढांकेलो एवो (पडहो) के० पडह होय छे. (उ) के० वली (वलयरूवा) के० गोल वलयने आकारे (झल्लरिया) के० झालर होय छे. ॥ ३०४ ॥ उद्घायओ मुयंगो, हिट्ठो रुद्दो तहोवरि तणुओ॥ पुष्फसिहावली रहिया, चंगेरी पुष्फचंगेरी ॥ ३०५ ॥
अर्थ-(उद्धायओ) के० उंची आकृतिबालो, (हिट्ठोरुद्दो)