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________________ १४५ ( विवरीयं ) के० चोथा संस्थान थकी विपरीत लक्षणवालुं एटले पृष्ट उदर हृदय ए सारा लक्षणवाला अने मस्तक कंठ हाथ पग लक्षण हीन होय ते ( पंचमर्ग ) के० पांचमुं कुब्ज संस्थान जाorg ने सत्य के सर्व प्रकारे ( अलक्खणं ) के० लक्षण रहित होय ते (छहं भवे ) के० छठु हुडक संस्थान जाणं. ( गप्भयनरतिरिय ) के० गर्भज मनुष्य अने गर्भज तिर्थच ( छहा ) के० छ संस्थानवाला होय . ( सुरा समा ) के० देवता समचतुरस्र संस्थानवाला होय छे, अने (सेसा ) के० वाकीना जीवो ( हुंडया ) के० हुंडक संस्थानवाला होय छे ।। २४५ ॥ हवे देवता चवीने कइ गतिमां अजे ? ते आगति कहे छे. जंति सुरा संखाज्य, गप्भय पज्जत्त मणुयतिरिएसु ॥ पज्जते य बायर, भूदगपत्तेयगवणेसु ॥ २४६ ॥ अर्थ — सामान्यथी चारे निकायना (सुरा) के० देवता चवीने युगलिया मनुष्य विना ( संखाउय ) के० संख्याता आयुष्यवाला ( गप्भय) के० गर्भज अने ( पज्जत्त ) के० पर्याप्ता एवा ( मणुयतिरिएस) के० मनुष्य अने तिर्यचने विषे तथा (पज्जतेसु) के० पर्याप्ता ( बायर ) के० बादर एवा (भृदगपत्तेयगवणेसु) के० पृथ्वीकाय अप्काय अने प्रत्येक वनस्पतिकायम ( जंति) के० जाय छे. अर्थात ए पांच गतिमां उपजे. बीजी एके गतिमां उपजे नहीं. ॥ २४६ ॥ तत्थवि कुमार - भिइ एगिदिएसु नो जंति | ओणयपमुहा चविरं, मणुएसु चैव गच्छंति || २४७|| अर्थ - ( तत्थवि ) के० तेमां पण ( सणकुमारप्पभिइ ) के०
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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