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समचउरंस नग्गोह, साई वामण य खुज्ज हुंडे य ॥ जीवाण छ संठाणा, सवत्थ सुलक्खणं पढमं || २४३॥ नाहीए उवरि बीयं, तइयमहों पिट्ठि उयर उखज्जं ॥ सिरगीव पाणि पाए, सुलक्खणं तं चउत्थं तु ॥ २४४ ॥ विवरीयं पंचमगं, सवत्थ अलक्खगं भवे छ । गम्भयनरतिरिष छहा, सुरा समा हुंडया सेसा ॥ २४५ ॥
अर्थ - १ ( समचउरंस ) के० समचतुरस्र, २ ( नगोह ) ho न्यग्रोधपरिमण्डल, ३ ( साइ ) के० सादि, ४ ( वामण ) के० वामन ५ (खुज्ज) के० कुब्ज, ६ ( हुंडे य ) के० हुंडक. ए (जीवाण) के० जीवोना ( छ संठाणा ) के० छ संस्थान जाणवा.
मां ( सवत्थ ) के० ए छ संस्थानमा ( सुलक्खणं पढमं ) के० सारा लक्षणवालु पहेलुं संस्थान जाणवु, पद्मासने बेसवाथी चारे बाजुए सरखी आकृतिवालुं होय ते पहेलुं समचतुरस्र संस्थान कहेवाय. ॥ २४३ ॥
जे वडवृक्षनी पेठे ( नाहीए उवरि ) के० नाभिनी उपर सारा लक्षणत्रालु अने नीचे होन होय ते (बीयं ) के० बीजुं न्यग्रोधपरि मंडल संस्थान कहेवाय. (तइयं) के० त्रीजुं सादि संस्थान ते (अहो ) के० नाभिनी नीचे सारा लक्षणवालुं अने नाभिनी उपर होन लक्षवालुं जाणवु. (पिठि ) के० पृष्ठ, ( उयर) के० उदर अने ( उरवज्जं ) के० छाति तेने बर्जीने बाकीना ( सिर ) के० मस्तक, [गीव ] के० कंठ, ( पाणि) के० हाथ अने ( पाए ) के० पग एटला ( सुलक्खणं) के० सारालक्षणवाला होय ( तं ) के० ते ( चउत्थं ) के० चोथुं वामन संस्थान जाणवु ॥ २४४ ॥