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आयुष्य अड भाग के० पलयोपमना आठमा भागनुं जाणवु. ए ज्योतिषी देव तथा देवीओनी जघन्य तथा उत्कृष्ट आयुष्य स्थिति कही ॥७॥ हवे वैमानिक देवोनुं उत्कृष्ट आयुष्य दोढ गाथावडे कहे छ..
८१ सारा दो साहि सत्त साहिय, दस चउदस संतर अयर जा सुक्को ॥ इक्कि महियमित्तो, जा इगतीसुवरि । गेविज्जे ॥मा तित्तीसणुत्तरेसु, सोहम्माइसु इमा १3. ठिई जिठा ॥ ___ अर्थः-पहेला सौधर्म देवलोकने विषे देवतार्नु उत्कृष्ट आयुष्य (दो ) के० बे सागरोपमर्नु होय छे. आ आयुष्य सौधर्म देवलोकना छल्ला तेरमा प्रतरमां निवास करनारा देवतार्नु जाणवु. बीजा ईशान देवलोके पण तेरमा प्रतरे बे सागरोपम अने ( साहि ) के० पल्योपमनो असंख्यातमो भाग अधिक होय छे. त्रीजा सनत्कुमार देवलोके देवतार्नु उत्कृष्ट आयुष्य ( सत्त ) के० सात सागरोपमर्नु छेल्ले प्रतरे होय छे. ए प्रमाणे चोथा माहेन्द्र देवलोके सात सागरोपम अने ( साहि ) के० पल्योपमनो असंख्यातमी भाग अधिक होय छे. पांचमे ब्रह्मदेवलोके देवता, उत्कृष्ट आयुष्य (दस) के० दश सागरोपमनु, छठे लांतक देवलोके ( चउदस) के० चउद सागरोपमनु, अने सातमे शुक्र देवलोके देवतार्नु उकृष्ट आयुष्य (सतर अयर) के० सत्तर सागरोपमनुं होय छे. एम (जा सुको) के० यावत् खा शुक्र देवलोक सुधी जाणवु. ( इत्तो ) के० त्यार पछी (इक्किकमहियं ) के० एक एक सागरोपमनी वृद्धि करवी ते (जा) के० ज्यां सुधी ( उवरि गेविजे) के० उपरना नवमा