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१०८ अर्थ-(वइसाहठागठियपय) के बे पग पहोला करोने उभेला, [कडित्यकरजुग ] के० केड उअर के हाथ मूकेला रवा (नरागिई ) के० पुरुषनी आकृति समान ( लोगो ) के० चउद राजलोक छे. ते (उत्पत्तिनासधुवगुण) के० उत्पत्ति नाश अने ध्रुव ए गुणोथी तथा [धम्मादिछदछ ) के० धर्मास्तिकायादि छ द्रव्योथी ( पडिपुण्णो) के० भरपूर भरेलो छे. ॥ १९२ ॥ केणविन कओन धओ,गाहारोगहडिओ सतिद्वो॥ अहमुहमहमलगठिआ, लहुमल गसंपुडसरिखा ॥१९॥ ___ अर्थ-चली (कणवि न कओ ) के० कोइथी नहिं करायेलो, न (धओ) के० कोइथी नहिं धारण करायेलो, (अणाहारो) के. आधार विनाना, (णहठिओ के० आकाशमां रहेलो, (सयंसिद्धो) के० पोतानी मेलेज सिद्ध अने ( अहमुहमल्लगठिओ ) के० नीचा मुखवाला मोटा सराव सरखी आकृतिवालो तथा उपर (लहुमल्लगसंपुडसरिखो ) के० नाना सराव संपुट सरखो चौदराज लोक छे. ॥ १९३ ॥ . पयतलि सग मज्झेगो, पण कुष्परि सिरतलेगरज्जु पिहु।।
सो चउदसरज्जुच्चो,माघवइतलाओ जा सिद्धि ।।१९४।। ____ अर्थ-(पयतलि) के. लोकना पगतलियानी नीचे अर्थात् सातमी नरक नीचे (सग) के० सात राज प्रमाण पहोलो (मज्झेगो के० मध्य भागे एक राज पहोळो, (कुप्परि ) के० कोणीना भागने विषे [पण ] के० पांच राज प्रमाण पहोलो, अने (सिरतलेगरज्जु ) के० मस्तकने विवे एकराज ( पिहु ) के० पहोलो, (सो) के० ते राजलोक (चउदस रज्जुच्चो ) के० चउद राजलोग उंची