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________________ १०७ ननी पहोलाइ विगेरेने ( नवगुण) के० नवगुणी चंडादिक गतिथी मापे तो पार पाभे ॥ ८८ ॥ १८९ ॥ पणयालीसं लक्खा, सीमंतय माणुसं उडु सि च ॥ अपइठाणो सबट्ट, जंबुद्दीवा इमं लक्खं ॥ १९० ॥ ____ अर्थ-(सी तय ) के० सीमंत नामनो नरकावास, माणुस के० मनुष्यक्षेत्र, उडु के० उडु नाम, विमान, च के० अने सिवं के० सिद्धशिला ए चार पदार्थों प्रत्येक (पणयालीसं लकवा) के० पीस्तालीश लाख योजनना प्रमाणवाला छे, तथा (अपइटाणो) के० सातमा नरकना अपइट्ठाण नरकावास, (सबह ) के० सर्वार्थ सिद्ध विमान अने ( जंबुद्दीवा) के० जंबुद्धाप ( इमं ) के० ए त्रण पदार्थों प्रत्येक ( लक्खं ) के० एक लाख योजनना छे. ॥ १९० ॥ अह भागा सग पुढविसु, रज्जु इकिक तहय सेोहम्मे ।। माहिद लंत सहसार-अच्चुय गेविज्ज लागते ।।१९१।। ___ अर्थ-मेरुना मध्य भागे रहेला रुचक प्रदेशथकी ( अह ) के. नीचे ( पुढविसु ) के० पृथ्वीने विषे [ भागा सग ] के० सात भाग करीये तो [ रज्जु इकिक ] के० एक एक भागना एक एक राज प्रमाण थाय छे. [ तहय ] के० तेमज (सोहम्मे ) के० सौधर्म देवलोक, ( माहिद ) के० ( माहेंद्र देवलोक, ( लंत ) के० लांतक देवलोक, ( सहसार ) के० सहबार देवलोक, ( अच्चुय ) के० अच्युत देवलोक, (गेविज ) के नव ग्रैवेयक अने (लागते ) के० लोकांतने विषे एम अनुक्रमे साते राजलोक जाणवा. नीचेना अने उपरना मली चौद राजलोक थाय ॥ १९१॥ वइसाहठाणठियपय-कडिस्थकरजुग नरागिई लोगो॥ उप्पत्तिनासावगुण-धम्मादिछदवपडिपुण्णा ॥१९२।।
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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