________________
१००
देवलोकने विवे ( पुष्फकिन्नाणं) के० पुष्पाक्की गे निमानी छ. ए सर्वे मली बत्रीश लाख विमान सोंधर्म देवलोकमां जागवां ॥१७॥ एमेवय ईसाणे, नवरं वट्टाग होइ नाणत्तं ॥ दो सय अठ्ठत्तोसा, सेसा जहचेव सोहम्मे ॥१७२॥५
अर्थ-( ईसाणे ) के० ईशान देवलोकने विवे ( एमेश्य ) के एज प्रमाणे एटले सौधर्म देवलोकनी पेठे जाणवू, परंतु (नवरं) के० एटलं विशेष छे के-( वट्टाग) के० वारला विमाननी ( दो सय अढतीसा) के० बेसो आडत्रीश ( 'नाणत्तं होइ) के० ए जुदा प्रकारनी संख्या छे. ( सेसा ) के० बाकीना विमानानी संख्या (जहचेव सोहम्मे ) के० जेम सौधर्म देवलोकमां कही छे नेम जाणवी ॥ १७२ ॥ सत्तरसप्तया सत्तु-त्तरा य साहम्मि आवलिविपाणा॥ बारस अट्ठारहिया, ईसाणे आवलि विवाणा ॥१७३।५।। ___ अर्थ-(सोहम्मि ) के० सौधर्म देवलोकने विवे चारे दिशाना सब मलीने ( सत्तरससया सतुतरा य ) के० सत्तर सो अने सात ( आवलि विमाणा ) के० पंक्तिमा रहेलां विमानो छे. अने ( ईसाणे ) के० ईशान देवलोकने विषे चारे दिशाना चार पंक्तिना मलीने ( वारस अट्ठारहिया) के० बार सो अने अढार अधिक ( आवलि विमाणा ) के० पंक्तिमा रहेलां विमानो छ । ३७३ ॥ सत्तावीसं लक्खा, अठाणउइ भवे सहस्सा य ॥ सत्तसया बासीया, ईसागे पुष्फकिन्नाणं ॥ १७४।०५८